वन्दे मातरम्!मित्रो!आज की 'सियासत की दिशा और दशा' पर एक संक्षिप्त पड़ताल हाजिर है।इससे सहमत होना या न होना आपका निजी अधिकार है। संयमित प्रतिक्रिया सादर अपेक्षित है।
राजनीति की सोच में ,कब किसकी परवाह |
जनता जाए भाड़ में ,बस कुर्सी की चाह ||
-डॉ मनोज कुमार सिंह
मायावती गुजरात गयी,रोहित बेमुला(नकली दलित प्रचारित)से मिलने गई,अब ये देखना है कि भगदड़ में मरे दलितों के परिवार से मिलने उनके घर कब जाती हैं।
जहाँ तक रैली में मरने वालों की बात है,ये दुखद घटना है, पर ये भाड़े के टट्टू 200 रुपए व पव्वे के लिए क्यों जाते हैं इन सभी पार्टियों के भांडों को सुनने?जब ये सारे 65 साल से कुत्ते की तरह केवल भौंक रहे हैं,पर करते आ रहे केवल अपने लिए। ये बात आखिर समझ क्यों नहीं रहे ये लोग??
आखिर क्यों २१% दलित समाज नेताओं को दलित दलित का राग अलापने को विवश कर देता है? क्यों १८% मुस्लिम समाज सभी नेताओं में सेकुलर बनने की होड़ लगा देता है?,क्यों बेमुला की आत्महत्या और बिसाहड़ा में गो हत्या के आरोपी की भीड़ द्वार हत्या देश के नेताओं की आत्मा को बेजार होकर चिल्लाने को विवश कर देता है?क्यों समृद्ध तथाकथित पिछड़ों की क्रीमी लेयर की सीमा ६५हजार मासिक इनकम से बढ़ाकर ८०००० मासिक करने को नेताओं को प्रेरित करता है?क्यों गरीबों के रहनुमा माया ,राहुल गाँधी ,लालू ,नितीश, मोदी आरक्षित वर्ग के गरीबो की प्रतियोगिता आरक्षित जातियो के अमीरों से करवा रही है?क्या किसी नेता को इसके विरोध में एक भी शब्द बोलते देखा है। दरअसल कोई भी नेता या पार्टी असली गरीबों की हितैेषी नहीं हैं।ये सभी का हर कदम वोटो की गणित से तय होता है। क्यों नहीं माया,पासवान और उदित राज गरीब अनुसूचित जातियो के हित में इस वर्ग के अमीरों को आरक्षण के दायरे से बाहर करवाने के लिए आवाज उठाते हैं क्योंकि सभी वोटो के खिलाड़ी हैं।अतः आज सभी जाति,वर्ग,धर्म के गरीबों को एक जुट होकर इस विभाजनकारी, जातिवादी(दलितों में भी भेदभाव) आरक्षण के विरोध में आवाज उठानी चाहिए। समता मूलक जातिविहीन समाज के निर्माण के लिए सामान्य जनता के साथ साथ प्रबुद्ध वर्ग को भी आगे आना चाहिए।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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