वन्दे मातरम्!मित्रो!एक गजल हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
अनकहे औ अनछुए हर राज,दिल का खोलते हैं।
कवि भले ही मौन हो,पर शब्द उसके बोलते हैं।
शब्द वे तूफान हैं,जिनकी हनक के सामने,
अभ्रभेदी अचल सत्ता के,कलेजा डोलते हैं।
अनिर्वचनीयता की ख़ुशबू,सुहृद ही महसूसता,
वे क्या जानेंगे जो सोना,पत्थरों से तोलते हैं।
जब कोई अपना अचानक,छोड़ जाता है कभी,
नींद में भी बिस्तरों पर,हाथ कुछ टटोलते हैं।
रंग तब साकार हैं,तस्वीर जब उनसे बने,
हैं वहीं फनकार,जो जीवन में अमृत घोलते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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