वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक 'मुक्तक' जिंदगी की विडंबनाओं पर आधारित है,सादर हाजिर है। अगर ये रचना आपके दिल को स्पर्श करे तो टिप्पणी जरुर करें ।
कुछ शीशियाँ,बोतलें,कतरने चुनते हैं।
व्यर्थ हो जिंदगी तो,अनमने चुनते हैं।
वक्त कितना भी हो,नाखुश फिर भी,
बच्चे कबाड़ से भी,सपने चुनते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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