वन्दे मातरम्!मित्रो!दीपोत्सव पर मेरा एक गीत हाजिर है। अगर अच्छा लगे तो स्नेह जरुर दीजिएगा।
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तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।।
1
सदी बीत गई चाँद तारे उगे सब।
धरा,सूर्य सारे नज़ारे उगे सब।
क्षितिज पर झुके आसमां की अदा ले,
धरा चूमते हर किनारे उगे सब।
हकीकत यही है उजाला जहाँ तक,
वहाँ न तमस का चला, न चलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
2
सहज,सत्य,सुन्दर,सलोना,सुचिंतन।
जरुरी बहुत है सृजन नित्य नूतन।
मधुर शांत शब्दों की अपनी छवि हो,
लगे न कहीं से उड़ाए हैं जूठन।
शब्दों का दीपक तमस पर है भारी,
मगर मूल्य पल-पल चुकाना पड़ेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
3
तमस की निशा जब,धरा को डराए।
उजालों की देवी उषा बनके आए।
पनपे जो मन में घुटन की अमावस,
मिटाकर हमेशा नई सोंच लाये।
लहू से जो सींचा है अहले वतन को,
वहीं यश का गौरव पताका बनेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
4
नजाकत की खुश्बू से भर भर के सपने।
किरन ने सुमन में भरे रंग कितने।
भौंरों, तितलियों के गुंजार सुनकर,
चमकते हैं उपवन के व्यक्तित्व अपने।
सदा तुम शिरीष पुष्प सा मुस्कुराओ,
खिजां में भी सुरभित चमन इक मिलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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