वन्दे मातरम्!मित्रो!सुप्रभात!!आज एक मुक्तक हाजिर है।टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
हमारी ऑनलाइन जिंदगी,भी इक हकीकत है।
न रुतबा है न रकबा है,यही अपनी रियासत है।
भिखारी भी नहीं हम,कर्म करते हैं कमाते हैं,
हमारे नाम पर सुनते है,संसद में सियासत है।
(ऑनलाइन-रेल पटरी के सन्दर्भ में)
डॉ मनोज कुमार सिंह
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