वन्दे मातरम्!मित्रो!कुछ पंक्तियाँ हाजिर है।इस पर आपका क्या कहना है?
कवियों से लड़ने निकले हैं,
कॉपी पेस्ट बहादुर लोग।
हंसों पर हँसते फिरते हैं,
बगुले,कौवे,दादुर लोग।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!कुछ पंक्तियाँ हाजिर है।इस पर आपका क्या कहना है?
कवियों से लड़ने निकले हैं,
कॉपी पेस्ट बहादुर लोग।
हंसों पर हँसते फिरते हैं,
बगुले,कौवे,दादुर लोग।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!उत्तर प्रदेश के चुनाव के संदर्भ में एक कुण्डलिया हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
बँटवारा टिकट हुआ,लेकर लाख,करोड़।
प्रत्याशी थे पा टिकट,दिल से भाव विभोर।
दिल से भाव विभोर,अचानक विपदा आई।
टिकट न हो फिर रद्द,आँख से नींद उड़ाई।
हे पार्टी परधान!,फैसला करो दुबारा।
कालाधन ले करो,टिकट का फिर बँटवारा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
कालाधन पर वार कर,दे दी ऐसी चोट।
हो हजार या पाँच सौ,मरे पड़े सब नोट।
मरे पड़े सब नोट,बैंक जा जिंदा होंगे।
जिसमें होगी खोंट,सदा शर्मिंदा होंगे।
कितने पागल आज,दिखे बाबू,नेतागन।
गरियाते बस आज,व्यर्थ जिनका कालाधन।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!सुप्रभात!!आज एक मुक्तक हाजिर है।टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
हमारी ऑनलाइन जिंदगी,भी इक हकीकत है।
न रुतबा है न रकबा है,यही अपनी रियासत है।
भिखारी भी नहीं हम,कर्म करते हैं कमाते हैं,
हमारे नाम पर सुनते है,संसद में सियासत है।
(ऑनलाइन-रेल पटरी के सन्दर्भ में)
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आज मेरे पोते साहब 'रचितकाव्य चन्दन' का प्रथम जन्मदिन है।उनके लिए आशीर्वाद स्वरुप एक दोहा और एक कुण्डलिया प्रस्तुत है। आप सभी का स्नेहाशीष सादर अपेक्षित है।
दोहा
विश्वनाथ की है कृपा,दिया उन्हीं का हर्ष।
'रचितकाव्य' पूरा किए,आज सुखद इक वर्ष।।
कुण्डलिया
जन्मदिवस पर है यहीं,मेरा आशीर्वाद।
दीर्घजीविता प्राप्त हो,रहें सदा आबाद।
रहें सदा आबाद,यशस्वी बन दुनिया में।
शौर्य सदा हो साथ,सुखद जीवन बगिया में।
'रचितकाव्य'तुम प्राण,हमारे गुंजित मधुकर।
तुमको अर्पित स्नेह,मधुर हर जन्मदिवस पर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
आज की ब्लैकियों की ईश्वर से कामना-
साईं इतना दीजिए,धन से घर भर जाय।
इतना लूटूं देश को,बीस पुश्त तक खाय।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!
लय,प्रवाह,यति,गति लिए,होते सुमधुर छंद।
सहज समर्पण में छिपा,जीवन का आनंद।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्! मित्रो! मैं आप सभी का अपने जन्मदिन पर इतना ढेर सार आत्मीय स्नेह पाकर बहुत खुश हूँ। एक कुण्डलिया छंद में अपनी भावना व्यक्त कर रहा हूँ।
जन्मदिवस पर दे मुझे,अपना आशीर्वाद।
गद गद मन को कर दिया,और हृदय आबाद।
और हृदय आबाद,सदा सद्कर्म करेगा।
देता हूँ विश्वास,सृजनरत सदा रहेगा।
इसी तरह दें प्रेम,सदा ही आप श्रेष्ठवर!
यही बड़ा उपहार,हमारे जन्मदिवस पर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो! युगबोध से लबरेज तीन खुरदुरे दोहे हाजिर हैं। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी रचनाओं को अगर अच्छी लगें तो जरुर पढ़ें और स्नेह दीजिए । मेरे साथ कुछ लोग ऐसे भी जुड़े हैं,जो मेरे परिचित हैं और मुझे बहुत प्यार करते है जिनके संबंध कविता को लेकर नहीं है। फिर भी वे मेरे आत्मीय हैं,लेकिन कुछ मेरे काव्य व्यक्तित्व के चलते जुड़े हैं उनका मैं हृदय से आभारी हूँ जो मेरी रचनाओं पर टिप्पणी करके मेरा हौसला अफजाई करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मेरी रचनाओं को शेयर करने के बजाय कॉपी पेस्ट करके अपना नाम डाल देते हैं। ऐसे काफी लोगों को मैंने ब्लॉक कर दिया है।
मित्रो!काव्यकर्म मेरा पैशन है,पैत्रिक संस्कार है और साथ में आपका प्यार है।
.................................................
फेसबुक पर कवियों की,ऐसी लगी कतार।
मोती के बाजार में, ज्यों मछली-व्यापार।।1
.................................................
तुम मुझको तुलसी कहो,तुझको कहूँ कबीर।
आओ मिलकर बाँट लें,बौनेपन की पीर।।2
................................................
वाह वाह की लत लगी,बस ताली की चाह।
मंचों की कविता बनीं,सबसे बड़ी गवाह।।3
डॉ मनोज कुमार सिंह
मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग लिंक www.drmks.blogspot.com पर क्लिक करें।
वन्दे मातरम्!मित्रो! थोड़ा खुरदुरा मगर सच की पड़ताल करता हुआ एक दोहा और एक कुण्डलिया सादर प्रस्तुत है। टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
दोहा
भ्रम पैदा करते सदा,फेसबुकीया मित्र।
उनको रचना चाहिए,या उन्मादक चित्र।।
कुण्डलिया
उन्मादक तस्वीर पर,लाइक,शब्द हजार।
पर रचना पर टिप्पणी,केवल दो या चार।
केवल दो या चार,समय कितना बदला है।
गर्हित हुए विचार,भला ये कौन बला है।
सुन मनोज कविराय,बने रह कविता साधक।
ऐसा कर कुछ काम,मिटे चिंतन उन्मादक।।
(उन्मादक शब्द का प्रयोग अश्लीलता के अर्थ में किया गया है।)
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!सुप्रभात मित्रो! अपनी बात लेकर मेरे तीन दोहे हाजिर हैं।आपका स्नेह सदैव की तरह बना रहे।टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
भला बुरा जो भी लगे, है सौ की इक बात।
कविता मेरी बोलती,खरी खरी सी बात।।1।।
फुटपाथी पाठक सदा,रहें वाल से दूर।
गुणग्राही कुछ मित्र ही,हैं मुझको मंजूर।।2।।
टैगासुर सुन प्रार्थना,मत कर तू मजबूर।
नहि तो करके ब्लॉक फिर,कर दूँगा मैं दूर।।3।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!दीपोत्सव पर मेरा एक गीत हाजिर है। अगर अच्छा लगे तो स्नेह जरुर दीजिएगा।
.............................................
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।।
1
सदी बीत गई चाँद तारे उगे सब।
धरा,सूर्य सारे नज़ारे उगे सब।
क्षितिज पर झुके आसमां की अदा ले,
धरा चूमते हर किनारे उगे सब।
हकीकत यही है उजाला जहाँ तक,
वहाँ न तमस का चला, न चलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
2
सहज,सत्य,सुन्दर,सलोना,सुचिंतन।
जरुरी बहुत है सृजन नित्य नूतन।
मधुर शांत शब्दों की अपनी छवि हो,
लगे न कहीं से उड़ाए हैं जूठन।
शब्दों का दीपक तमस पर है भारी,
मगर मूल्य पल-पल चुकाना पड़ेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
3
तमस की निशा जब,धरा को डराए।
उजालों की देवी उषा बनके आए।
पनपे जो मन में घुटन की अमावस,
मिटाकर हमेशा नई सोंच लाये।
लहू से जो सींचा है अहले वतन को,
वहीं यश का गौरव पताका बनेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
4
नजाकत की खुश्बू से भर भर के सपने।
किरन ने सुमन में भरे रंग कितने।
भौंरों, तितलियों के गुंजार सुनकर,
चमकते हैं उपवन के व्यक्तित्व अपने।
सदा तुम शिरीष पुष्प सा मुस्कुराओ,
खिजां में भी सुरभित चमन इक मिलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आप सभी की दीपावली शुभ हो। एक मुक्तक के साथ इस पर्व पर अशेष बधाइयाँ।
पहले मन का दीप जला ,फिर घर का दीप जलाना तू।
प्रेम ज्योति जग में फैलाकर,गहरे तिमिर भगाना तू।
ज्ञान,बुद्धि,सद्मार्ग प्राप्त हो,जीवन भर आनंद मिले,
खोल सको तो खोल हृदय पर,मस्ती का मयखाना तू।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्! आप सभी मित्रों को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ।एक मुक्तक भी सादर समर्पित है।
सही है कि थोड़ा यहाँ,वहाँ जाऊँगा।
मगर मैं छोड़कर,तुझको कहाँ जाऊँगा।
तेरी यादों का लेकर,लाव लश्कर ,
जिंदगी भर सँवारुंगा,मैं जहाँ जाऊँगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
.................................................
वे अपने आप को न जाने क्या,समझते हैं।
जिद् में पागल हैं,खुद को खुदा,समझते हैं।
परिंदे आँधियों में भी,शज़र के साथ रहते हैं,
उन्हें मालूम है,हर रिश्ते,वफा,समझते हैं।
कदम वे चूम लेते है,सदा ही कामयाबी का ,
जो अपनी जिंदगी का,हर बुरा भला,समझते हैं।
यही इक कामयाबी है कि बिन बोले जमाने में,
नजर इक दूसरे की,मौन की सदा,समझते है।
जब भी निकले हैं आँसू ,मन को हल्का कर ही देते हैं,
इसे हर दर्द की हम,इक अदद दवा,समझते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक 'मुक्तक' जिंदगी की विडंबनाओं पर आधारित है,सादर हाजिर है। अगर ये रचना आपके दिल को स्पर्श करे तो टिप्पणी जरुर करें ।
कुछ शीशियाँ,बोतलें,कतरने चुनते हैं।
व्यर्थ हो जिंदगी तो,अनमने चुनते हैं।
वक्त कितना भी हो,नाखुश फिर भी,
बच्चे कबाड़ से भी,सपने चुनते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो! भोगे गए खुरदुरे सच पर आधारित एक 'मुक्तक' आपको समर्पित है।आपकी प्रतिक्रिया सादर अपेक्षित है।
नजरों में उनकी इसलिए,काबिल नहीं रहा।
दरबार के नवरत्न में,शामिल नहीं रहा।
गर्दन झुकाकर बात की,कायल नहीं नजर,
ये देख मुझसे राजा,खुशदिल नहीं रहा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ताजा मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
तुम आतंकी हैवानों के,मरने पर क्यों रोते हो?
तुम्हीं बता कि बुरहानों के,मरने पर क्यों रोते हो?
क्या रिश्ता है भारतमाता के,दुश्मन से बोल जरा,
गद्दारों औ शैतानों के,मरने पर क्यों रोते हो?
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
राष्ट्र के लिए रग-रग में अपमान भरा है।
ऐसे जयचंदों से हिन्दुस्तान भरा है।
बाहर के दुश्मन से पहले,उन्हें मिटाओ,
जिनके दिल में राष्ट्रघात-हैवान भरा है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह चाहूँगा।
कविता कम चुटकुला सुनाना,चाहता है।
मंचों से बस बात बनाना,चाहता है।
आत्म प्रकाशन में अपनी,औकात से ज्यादा,
जुगनू खुद को सूर्य बताना,चाहता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ताजा मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।
जिसकी उर्जा से धरती के ,कण-कण को जीवन मिलता,
प्रखर रूप धर सूर्य अकेला,नित्य गगन में जलता है।
उसी तरह रक्षार्थ धरा पर,करता जो सद्कर्म सदा,
सहज आत्मविश्वास लिए,नर-सिंह अकेला चलता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ताज़ा गजल हाजिर है। आपकी बहुमूल्य टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
याद की परछाइयों में,जी रहा है।
आदमी तनहाइयों में,जी रहा है।
आँसुओं के हर्फ़ उसके,पढ़ के जाना,
दर्द की गहराइयों में,जी रहा है।
मुल्क वर्षों बाद भी,क्यूँ मुफलिसी में,
भूख की अंगडाइयों में,जी रहा है।
किसकी साजिश है कि चूल्हे से छिटक कर,
आग अब दंगाइयों में,जी रहा है।
जबसे लकवाग्रस्त हैं,नेकी,मुहब्बत,
आदमी रुसवाइयों में,जी रहा है।
समझता था मर गया,जयचंद कब का,
देखता हूँ भाइयों में,जी रहा है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
राम राम!एगो हमार गीत रउवा सबके समर्पित बा। अगर गा के रउवा सभे पढ़ब त मजा आई।
होला मतलब के जे यार,वफादार ना होला।
ओहसे करि ल कतनो प्यार,उ साकार ना होला।
उ ना समझेला जिनगी भर,
कबहूँ पीर पराई।
जेकरा पाँवन में ना होखे,
फाटल कबो बेवाई।
बईठल बा जेकरा रग-रग में,
धोखा आ मक्कारी।
उ का जानी कईसन होला,
रिश्तन के फुलवारी।
कबहूँ बगिया फूल आ भंवरा बिन,गुंजार ना होला।
होला मतलब के जे यार,वफादार ना होला।
मन मधुबन में आग लगा,
केहू छिपके मुस्काला।
कर देला बरबाद डाह में,
खुशियन के मधुशाला।
आ केहू त जीवन भर,
दोसरे खातीर जिएला।
आपन ख़ुशी बाँटि दोसरा के,
गम खरिदत फिरेला।
अइसन दोसर कवनो जिनगी में,तेवहार ना होला।
होला मतलब के जे यार,वफादार ना होला।
घोर अन्हरिया छा जाला जब,
मन दर्पन के आगे।
लउके ना कुछ साफ़ नजर से,
बेचैनी तब जागे।
आगे गड़हा,पीछे खाई
निर्णय ना हो पावे।
तब तक केहू राग प्रेम के,
अचके आई सुनावे।
कइसे कह दीं मन के पीड़ा के,उपचार ना होला।
होला मतलब के जे यार,वफादार ना होला।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आज की 'सियासत की दिशा और दशा' पर एक संक्षिप्त पड़ताल हाजिर है।इससे सहमत होना या न होना आपका निजी अधिकार है। संयमित प्रतिक्रिया सादर अपेक्षित है।
राजनीति की सोच में ,कब किसकी परवाह |
जनता जाए भाड़ में ,बस कुर्सी की चाह ||
-डॉ मनोज कुमार सिंह
मायावती गुजरात गयी,रोहित बेमुला(नकली दलित प्रचारित)से मिलने गई,अब ये देखना है कि भगदड़ में मरे दलितों के परिवार से मिलने उनके घर कब जाती हैं।
जहाँ तक रैली में मरने वालों की बात है,ये दुखद घटना है, पर ये भाड़े के टट्टू 200 रुपए व पव्वे के लिए क्यों जाते हैं इन सभी पार्टियों के भांडों को सुनने?जब ये सारे 65 साल से कुत्ते की तरह केवल भौंक रहे हैं,पर करते आ रहे केवल अपने लिए। ये बात आखिर समझ क्यों नहीं रहे ये लोग??
आखिर क्यों २१% दलित समाज नेताओं को दलित दलित का राग अलापने को विवश कर देता है? क्यों १८% मुस्लिम समाज सभी नेताओं में सेकुलर बनने की होड़ लगा देता है?,क्यों बेमुला की आत्महत्या और बिसाहड़ा में गो हत्या के आरोपी की भीड़ द्वार हत्या देश के नेताओं की आत्मा को बेजार होकर चिल्लाने को विवश कर देता है?क्यों समृद्ध तथाकथित पिछड़ों की क्रीमी लेयर की सीमा ६५हजार मासिक इनकम से बढ़ाकर ८०००० मासिक करने को नेताओं को प्रेरित करता है?क्यों गरीबों के रहनुमा माया ,राहुल गाँधी ,लालू ,नितीश, मोदी आरक्षित वर्ग के गरीबो की प्रतियोगिता आरक्षित जातियो के अमीरों से करवा रही है?क्या किसी नेता को इसके विरोध में एक भी शब्द बोलते देखा है। दरअसल कोई भी नेता या पार्टी असली गरीबों की हितैेषी नहीं हैं।ये सभी का हर कदम वोटो की गणित से तय होता है। क्यों नहीं माया,पासवान और उदित राज गरीब अनुसूचित जातियो के हित में इस वर्ग के अमीरों को आरक्षण के दायरे से बाहर करवाने के लिए आवाज उठाते हैं क्योंकि सभी वोटो के खिलाड़ी हैं।अतः आज सभी जाति,वर्ग,धर्म के गरीबों को एक जुट होकर इस विभाजनकारी, जातिवादी(दलितों में भी भेदभाव) आरक्षण के विरोध में आवाज उठानी चाहिए। समता मूलक जातिविहीन समाज के निर्माण के लिए सामान्य जनता के साथ साथ प्रबुद्ध वर्ग को भी आगे आना चाहिए।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
जंगल,खाई,पर्वत,बस्ती,दरिया,रौशन करता है।
सूरज को खुद पता नहीं कि क्या क्या,रौशन करता है।
वक्त अँधेरे के गिरफ्त,औ तूफानों में जब फँसता,
एक हौसले का दीपक हर लम्हा,रौशन करता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक सादर हाजिर है।
बहरे मंजर में दिल किससे दर्द सुनाये,बोल जरा।
पानी ही जब आग लगाए कौन बुझाए,बोल ज़रा।
आँखें तो अब भी अपनी,पर नींद पराई जबसे है,
गिरवी हैं सब ख्वाब उन्हें अब कौन छुड़ाए,बोल ज़रा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
राम राम मित्र लोगन के!एगो मुक्तक हाजिर बा। सनेह देहब सभे।
ताल अचके में बेताल हो जाता।
आज हर बात पर बवाल हो जाता।
इ कइसन समय बा?,अच्छा करीं कतनो रउवाँ,
खड़ा ओहपर सवाल हो जाता।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!आजकल आदमी बहुत तनाव में रहता है। उससे बचने के लिए एक सहज उपाय एक 'कुण्डलिया' के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।अगर सही लगे तो स्नेह दीजिएगा। सादर,
जब शीतल मस्तिष्क हो,मुख पर हो मुस्कान।
भगता तभी तनाव ये,मीठी रहे जुबान।
मीठी रहे जुबान,हृदय उत्साह भरा हो।
साहस औ विश्वास,अडिगता लिए खड़ा हो।
सुन मनोज कविराय,बदल कुछ तो अपना ढब।
जीवन तब खुशहाल,मुक्त हो चिंता से जब।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक हास्य-व्यंग्य मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।
स्वच्छता अभियान का,असली पुरोधा देखिए।
मूत्रजल से सींचने वाला,ये योद्धा देखिए।
चौक चौराहों को भी,ये सींचता है सामने,
आदमी के रूप में,साक्षात् गधा देखिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक गजल हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
अनकहे औ अनछुए हर राज,दिल का खोलते हैं।
कवि भले ही मौन हो,पर शब्द उसके बोलते हैं।
शब्द वे तूफान हैं,जिनकी हनक के सामने,
अभ्रभेदी अचल सत्ता के,कलेजा डोलते हैं।
अनिर्वचनीयता की ख़ुशबू,सुहृद ही महसूसता,
वे क्या जानेंगे जो सोना,पत्थरों से तोलते हैं।
जब कोई अपना अचानक,छोड़ जाता है कभी,
नींद में भी बिस्तरों पर,हाथ कुछ टटोलते हैं।
रंग तब साकार हैं,तस्वीर जब उनसे बने,
हैं वहीं फनकार,जो जीवन में अमृत घोलते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!विरोधी अब शौचालय में किया जाने वाला काम मुँह से करना शुरू कर दिए हैं। एक पुरानी प्रामाणिक कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।सर्जिकल आपरेशन के बाद पाकिस्तान तो मान रहा है कि कार्यवाही हुई है,लेकिन देश के गद्दार अब भी इसे सच नहीं मान रहे और थेथरई पर उतर आये हैं। उन्हीं के लिए एक मुक्तक हाजिर है। अच्छा लगे तो अवश्य अपनी प्रतिक्रिया दें।
ठीक नहीं किए मोदी जी!...शौचालय सब बनवाकर।
कुत्ते मुँह से शौच कर रहे,अब तो मीडिया में आकर।
चाह देश की, इन पागल कुत्तों की, चमड़ी खिंचवा लो,
फिर टंगवा दो चौराहों पर उनमें भूस्सा भरवाकर।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे अखंड भारतमातरम्!मित्रो! कुत्ते की दुम पाकिस्तान के लिए चेतावनी भरी अपनी एक रचना हाजिर करता हूँ जो सर्जिकल आप्रेशन के बाद मेरे मन में उभरी है। अच्छी लगे तो अपनी जिन्दा प्रतिक्रिया जरुर दें और इसे शेयर भी करें ताकि हिन्दुस्तान के अधिक से अधिक लोगों तक मेरी आवाज पहुँच सके। सादर,
टकराओगे हमसे गर, इस तरह मिटाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
परमाणु बम की धमकी का कोई हम पर असर नहीं।
तुझे मिटाने में छोड़ेंगे,अब हम कोई कसर नहीं।
समझायेंगे,ना समझे फिर,..फिर समझाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
पहले भी टुकड़े कर डाले,फिर टुकड़े करवाएँगे।
गिलगित,बलूचिस्तान,सिंध को आजादी दिलवाएंगे।
फिर उनसे तेरे सीने पर दाल दराया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
जाने कैसे सोच रहे ,मेरा कश्मीर तुम्हारा है?
वैसे ही हम सोच रहे कि पाकिस्तान हमारा है।
न माने तो हिंदूकुश तक तिरंगा फहराया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
दे दो हमको दाउद,हाफिज जैसे सब हत्यारों को।
आतंकी दहशतगर्दी के घिनौने सरदारों को।
नहीं दिए तो रक्त का दरिया रोज बहाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
अब हम सहन न कर पाएंगे सुन तेरी गद्दारी को।
दुनिया को भी बतलाएँगे हर तेरी मक्कारी को।
कर अनाथ दुनिया में तुझसे,भीख मँगाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
अब तक खून बहाया तुमने,आज हमारी बारी है।
दहशतगर्दी के खिलाफ अब लड़ने की तैयारी है।
शपथ लिया है दहशतगर्दी पूर्ण मिटाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
बच्चा बच्चा बोल रहा है भारतमाता की जय जय।
एक मरें तो सौ सौ मारो,दुश्मन के घर मचे प्रलय।
तुम्हें मिटाकर शांति अमन दुनिया में लाया जाएगा
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। अपना स्नेह जरुर दीजिए।
नाजायज चीनियों के पाँव का गन्दा ये जूता है।
उगा आतंक के घूरे का,बस इक कुकुरमुत्ता है।
उसपर विश्वास करना,ख़ुदकुशी से कम नहीं होगा,
शराफत नाम में है,आचरण से महज कुत्ता है।
Meaning Of
*P_A_K_I_S_T_A_N*
P - Pyaar
A - Aman
K - Khushhali
I - Insaaf
S - Shaanti
T - Tarakki
A - Ahinsa
N - *Not Available Here*
Forward to all indians...
डॉ मनोज कुमार सिंह
आतंकी देश पाकिस्तान का असली चेहरा
राम राम मित्र लोगन के!एगो मुक्तक काटजू के प्रतिक्रिया स्वरुप हाजिर बा। अगर नीमन लागे त आपन भी विचार दीहीं सभे।
इ कटजूवा बुढ़ौती में,सठिया गईल।
चाल से बात से जईसे,भठिया गईल।
रउवा सुनब कि कवनो,बिहारी कबो,
राह में धके ओकरा के,लठिया गईल।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह दीजिएगा।
ममता की कोई मापनी है क्या? मुझे बता।
अंधों के लिए रोशनी है क्या?मुझे बता।
इंसान तो इंसान ,तू इक जानवर में देख,
असल में यही जिंदगी है क्या?मुझे बता।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक युगबोध से लबरेज मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।
बेपेंदी के लोटों की यूँ,फितरत हमने देखी है ।
होंठों पे मुस्कान दिलों में,नफरत हमने देखी है ।
कुछ ऊँचे पद पाकर ऐसे,अकड़ू जाहिल बैठे हैं,
कितनी जहरीली है उनकी,नीयत हमने देखी है ।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।
जबसे तेजाबी बारिश है,रिश्तो की अंगनाई में।
सूख गईं खुशियों की कलियाँ,जीवन की अमराई में।
सद्भावों के बीज नहीं अब,उग पाते हैं इस दिल में,
बात रही ना अब तो वैसी,मौसम की अंगड़ाई में।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक हास्य-व्यंग्य मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।
स्वच्छता अभियान का,असली पुरोधा देखिए।
मूत्रजल से सींचने वाला,ये योद्धा देखिए।
चौक चौराहों को भी,ये सींचता है सामने,
आदमी के रूप में,साक्षात् गधा देखिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह