जबसे लूट-खसोट की,हुईं दुकानें बंद। कौवे मिलकर पढ़ रहे,मक्कारी के छंद।।
ठगबंधन कर ले भले,जितना भी पाखंड। जनता बिल्कुल मौन है,देगी निश्चित दंड।।
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