वंदे मातरम्!मित्रो!एक गीतिका सादर समर्पित है।
शब्द जब भी आपसी संवाद, करते हैं।
मौन रहकर भाव अनहद नाद, करते हैं।
जब भरोसा दो दिलों को,पास लाता है,
जिंदगी में प्यार उसके,बाद करते हैं।
अनकहे कैसे कहें ,जब समझ आता नहीं,
फिर नयन से नयन का,अनुवाद करते हैं।
दिल के सोए तार पे,उंगली फिरा कर देखिए,
ये भी वीणा की तरह, अनुनाद करते हैं।
दर्द की घाटी में उगते,आँसुओं को पढ़ जरा,
मुफलिसी में किस तरह,फरियाद करते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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