Thursday, February 21, 2019

हमरा माटी के गमक(भोजपुरी आलेख)

हमरा माटी के गमक
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आप सगरी मित्रन के हमार यथोचित प्रनाम।

भोजपुरी भासा के लेके रोज कुछ ना कुछ लोग प्रयास करि रहल बा। चलीं एही बहाने भोजपुरी पर कुछ बात कइल जाव। अगर भोजपुरी शब्द पर विचार कइल जाव त एह शब्द के पहिलका प्रयोग सन 1789 में प्रकाशित रेमंड के पुस्तक "शेरमुताखरीन" के अनुवाद के दुसरका संस्करण के भूमिका में मिलेला। कहल जाला कि राजा भोजदेव (सन 1005-55 ई.) के नाम पर भोजपुर के नामकरण भइल। एह शब्द के प्रमाणिकता खातिर जार्ज गिर्यर्सन,उदय नारायण तिवारी आदि लोग बहुते काम कईले बाड़ें। कुछ लोग एह लोगन के मत से सहमत ना भईलें ।ओहमे दुर्गाशंकर सिंह नाथ आदि के नाम लिहल जा सकेला। कुछ लोग एकरा नामकरण के वेद से जोड़ेला,जवना में रघुवंश नारायण सिंह ,जितराम पाठक ,अउरी डॉ.ए.बनर्जी के नाम के उल्लेख कईल जा सकताs।

कुछ लोग भोजपुरी के नामकरण के संबंध कन्नौज के राजा मिहिरभोज से जोड़ के देखेलें।,जवना में पृथ्वी सिंह मेहता आ परमानंद पाण्डेय के नाम लिहल जा सकेला। एह भासा के नामकरण में राहुल संकृत्यायन के नाम लिहल जाला,बाकिर उ भोजपुरी के दू गो भाग में बाँट के 'मल्ली'आ 'काशिका'नाम दे दिहलन। भले उनका नामकरण के ना मानल गइल। काहे कि तब तकले भोजपुरी नाम प्रचलन में आ गइल रहे।

भोजपुरी के केहू संस्कृत से त केहू मागधी से आ केहू प्राकृत अउरी अपभ्रंश से उपजल बतावेला। जवन भी बात होखे ,बाकिर भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से सगरी भोजपुरी इलाका हिंदी क्षेत्र से बाहर पड़ेला। एकर समर्थन गिर्यसन ,उदय नारायण तिवारी आ सुनीत कुमार चटर्जी भी कईले बाड़े ।भोजपुरी हिंदी के अपेक्षा बंगला, उड़िया आ असमिया के नजदीक बिया ।भोजपुरी त लिपि साम्यता के चलते हिंदी के करीब आ गईल। एकर त आपन खुदे बड़हन क्षेत्र आ भूभाग बा,जवन बिहार के सारण,सिवान,पूर्वी चंपारण,पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, सासाराम, भभुआ, उत्तरप्रदेश के बलिया, आजमगढ़, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, गोरखपुर,महाराजगंज,गाजीपुर,मऊ,जौनपुर,मिर्जापुर आ झारखंड के पलामू ,गढ़वा अउरी लातेहार जिलन के मातृभाषा हीय। एकरा के बोलेवालन के संख्या 20 करोड़ से उपर हो गइल बा।

अगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखल जाव त कहल जा सकेला कि भोजपुरी एगो विश्वभाषा हीय। जवन नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रुपनदेही आ कपिलवस्तु में बोलल जाले। नेपाल के 9%से ज्यादा लोग भोजपुरी भाषी बाड़ें। भारत आ नेपाल के अलावे देखल जाव त इ मारीशस, फिजी, सूरीनाम, ट्रिनिडाड, नीदरलैंड जइसन बड़हन देसन में भी बोलल आ समझल जाले। वर्तमान में एह देसन में कुछ कमी आइल बा,बाकिर चिंताजनक स्थिति नइखे।

एगो साँच बात इहो बा कि भोजपुरी भाषा के वाचिक रूप में विविधता देखल जाला, जवन एकरा विस्तृत भूभाग के चलते स्वाभाविक बर्ताव बा। जहाँ तकले बोले या लिखे के के सम्बन्ध में बात कहल जा सकेला,ओहमे कई गो विचार आ मत देखल गइल बा कुछ लोग ठेंठ भासा के त केहू शिक्षा,सरकारी कामकाज आ संचार माध्यम के स्वरुप के समर्थन कईले बा। हवलदार त्रिपाठी सहृदय ,रासबिहारी पाण्डेय अउर अवधबिहारी कवि ठेंठ भोजपुरी भासा के समर्थन कईलें,बाकिर एह धारा के ना के बराबर समर्थन मिलल।

हमनीं के इयाद राखे के चाहीं कि दुनिया के कवनो भासा जवना रूप में बोलल जाले एकदम ओहीतरे ना लिखल जाले। भोजपुरी अब खाली गीत गवनई के भासा नईखे रहि गइल। अब इ विचार, तर्क, शास्त्र, शासन, प्रशासन, ज्ञान, विज्ञान, कंप्यूटर, इंटरनेट, बाज़ार,रोजगार आदि के भासा बनि के विकास के राह पर अग्रसर बिया। हं भोजपुरी में जवना चीज खातिर शब्द बाड़ेसन ओकर बेहिचक प्रयोग करे के चाहीं,बाकिर अंग्रेजी आ अन्य भासा के शब्द के भोजपुरीकरण करे के फेर में ओकर वर्तनी बिगाड़ल ठीक नईखे। अगर जरुरी होखे त दोसरा भासा के शब्द भी बेहिचक अपनाईं। एह से भोजपुरी समृद्ध अउरी समर्थ होई। ना त हिंदी के हाल हो जाई। हिंदी के तत्सम वादी दृष्टिकोण से बहुते नुकसान भईल बा। एही से हमनी के खांटी भोजपुरी के आग्रह से बचे के चाहीं।

अंग्रेजी आ हिंदी के साथे दुनिया के सगरी भासा के भी स्थानीय रूप बाटे,बाकिर ओह हिसाब से ना लिखल जाला। भासा के दू गो रूप होला -पहिलका ग्राम रूप आ दूसरका शिष्ट रूप। भोजपुरी अब खाली गंवारन के भासा नईखे रहि गइल। एही से मूर्खतापूर्ण,संस्कारहीन आदि बातन के असली भोजपुरी ना माने के चाहीं। एकरा के बोलेवाला लोगन में बहुते विविधता बा।

अंत में,हम कहल चाहब कि रउवाँ भोजपुरी के समृद्ध आ समर्थ बनावे के चाहतानी त सतही भासा से ऊपर उठि के विश्व पटल पर स्थापित करे खातिर अन्य भासा के प्रचलित शब्दन के भी अपना में समेट के एकरा में एगो सतत प्रवाह भरीं आ प्रेम से कहीं -जय भोजपुरी जिंदाबाद-तब कहीं भूमंडलीकरण के एह युग में पूरा दुनिया में फईली हमरा माटी के गमक आ एकर व्यक्तित्व।

- डॉ मनोज कुमार सिंह

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