"जिसकी खोपड़ी में बस घिनौना पाप होता है।
वो निश्चित देशद्रोही वामपंथी साँप होता है।"
मित्रो!मेरी उक्त पंक्तियाँ बताती है कि वर्तमान में सामंती मिजाज में ऊभ-चूभ वामपंथी किस प्रकार अपनी विषैली श्रेष्ठता ग्रंथि और हेकड़ी में पूरी तरह से चूर हैं ।इतनी नफरत और घृणा से भरपूर हैं कि जनता तो छोड़िए ये लोग अपने आप से भी बुरी तरह कट चुके हैं ।उनकी अपनी जिद और सनक के चलते समाज और देश इनके लिए पराया हो चुके हैं। अपने ही अंतर्विरोधों में घिरे इन लोगों से सूत भर भी कोई असहमत हो जाए तो लगभग नफ़रत और गाली की भाषा में उसे भाजपाई , संघी , हिंदूवादी , राष्ट्रवादी आदि करार दे कर ऐसे नज़र डालेंगे गोया वह कीड़ा-मकोड़ा हो। स्वश्रेष्ठता,अहंकार , नफ़रत और घृणा ही इनका जीवन है । दिलचस्प यह कि इन लोगों का अब कोई इलाज नहीं ,लाइलाज हो चुके हैं ।और आप जानते हैं कि जब शरीर में कोई ऐसी लाईलाज बीमारी का का प्रकोप हो जाता है तो कीमो किया जाता है ,तब उस प्रभावित अंग को काटकर हटा दिया जाता है, ताकि रोग पूरे शरीर में न फैल पाए।इसी तरह से इनका ऑपरेशन भी जरूरी है।अब ये देश के लिए कैंसर साबित हो चुके हैं।अब इनकी पहचान अर्बन नक्सली के रूप में हो चुकी है।अनपढ़ माओवादी नक्सलियों से ज्यादा खतरनाक हैं ये अर्बन नक्सली।
ये वही लोग है जो पूरे देश में जब स्वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था और लोग जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जला रहे थे,तो कम्यूनिस्ट नेता भरी गर्मी के दिनों में लंका शायर के मिलों में उत्पादित कपड़े के सूट पहनकर घूमते थे,ताकी भारत में स्वदेशी आंदोलन के कारण लंका शायर के मिल मजदूर बेरोजगार न हों।
ये वही लोग है जो 1942 के 'अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान महात्मा गांधी को साम्राज्यवदियों का दलाल और सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्ता तक कहा।
ये वहीं लोग है ,जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महामंत्री एस.ए. डांगे जैसे लोग वर्षों अंग्रेजों के खुफिया एजेंट का काम किया। ये वही लोग हैं, जो पाकिस्तान निर्माण के लिये सैद्धांतिक आधार देते हुए भारत को खंड-खंड बाँटने की बहुराष्ट्रीय योजना तैयार की।
ये वहीं लोग है जो सत्ता सुख भोगने के लिये कांग्रेस की दलाली करते आपात काल का समर्थन किया और जिनके लिये राष्ट्रवाद और देशभक्ति जैसे शब्द गाली होते हैं।
1962 के युद्ध में चीन का पक्ष लिया और अब रुस और चीन के कम्यूनिस्ट पार्टियों के टुकड़ों पर पलते हैं।जेएनयू में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे'के नारे लगाते हैं। सेना को गाली देते हैं, उनकी शहादत पर खुशी मनाते हैं।कश्मीर में आतंकियों के मानवाधिकारों के सबसे बडे पैरोकार हैं और लाल क्रांति के नाम पर गरीब, निर्दोष किसानों,वनवासियों की हत्याएं कराते हैं- करते हैं- ये हैं एलीट /अर्बन नक्सली।इनसे निजात पाने के लिए मेरी दो पंक्तियाँ हाजिर हैं-
"मुल्क को डस रहे,हर विषैले करैत को ढूढ़ रहा हूँ।
कुचल दे खोपड़ी जिनकी,इक लठैत को ढूढ़ रहा हूँ।"
डॉ मनोज कुमार सिंह
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