वंदे मातरम्!
कोयल की कूक सुनकर,बच्चे भी कूकते थे।
मेले की पीपुहरी-सा,नित श्वास फूँकते थे।
बचपन कहाँ गया वो,पागल की तरह जब हम,
गाड़ी के पीछे दौड़कर,पेट्रोल सूँघते थे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment