वंदे मातरम्!मित्रो!एक 'मुक्तक' समर्पित है।
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वक्त जैसा भी हो,वो एक न एक दिन बीत जाता है।
कोई हारा हुआ बाजी भी एकदिन जीत जाता है।
भरोसा हो अगर दिल में,मुहब्बत हो निगाहों में,
घृणा का हर घड़ा निश्चित मुकम्मल रीत जाता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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