जनतंत्र में जलती है,उसकी सदा मशाल। जनता जिसकी ढाल हो,जनता जिसकी खाल।।
अनुभव शीतल कुंड है,अग्निकुंड है जोश। दोनों मिल बनते सदा,जीवन अमृत कोष।।
सहज,सरल,स्वभाव का,लिए मधुर मकरंद। लोक चेतना में घुमे,स्वभाषा स्वच्छंद।।
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