वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है-
खुली है आँख ,जबसे आदमी को सच हुआ मालूम,
मुल्क के डाकुओं को रात-दिन अब ताड़ते वोटर।
मुर्गा,दारू,पुरी,छोला पे,पहले वोट बिकते थे,
आज बहत्तर हजार को भी,ठोकर मारते वोटर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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