वन्दे मातरम्!मित्रो! अनुभवों पर आधारित यथातथ्य अभिव्यक्ति है यह। आज येन-केन-प्रकारेन अधिकाधिक पैसे उपार्जन और सुविधा-प्राप्ति की होड़ में अनेकानेक लोगों की सुख-शांति गायब है ।उनका जीवन "बाहर से फिट-फाट और भीतर से श्मशान घाट" जैसा लगता है। ऐसे लोगों के दिल-दिमाग से प्रायः विवेक, मानवता,अपनापन, सामाजिकता, राष्ट्रीयता और लोकहित के भाव विलुप्त हो जाते हैं।
ऐसे अति महत्वाकांक्षी लोग
घोर स्वार्थपरता,अहमन्यता,असंवेदनशीलता इत्यादि टुच्ची मानसिकता से ग्रस्त होकर खुद को बर्बाद कर लेते हैं।उनके लिए रिश्ते-नाते पान की पिक की मानिंद होते हैं।वे कभी भी सहज नहीं होते हैं।दिखावा,छलावा उनकी प्रकृति बन जाती है।ऐसे लोगों से भगवान बचाए!ये हरी भरी लहलहाती किसी की भी जिंदगी को स्वार्थवश कुचल देने से भी नहीं हिचकते।ये हमेशा संशय,असुरक्षा और अविश्वास में जीते हैं।ये कई मानसिक डिसऑर्डर डिजीज के शिकार भी होते हैं।ये कब क्या कर बैठें, कोई ठिकाना नहीं।इसलिए हमें ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखने की आवश्यकता होती है।दुनिया में ऐसे ढेरों हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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