रावण की औलाद हैं,वामी बुद्धिपिशाच।
नक्सल अरु आतंक के,रहे पक्ष में नाच।।
वामी बुद्धिपिशाच की,गंदी हर करतूत।
टांग उठाये घूमते,ज्यों श्वानों के पूत।।
हो कितना भी कीमती,तन पर भव्य लिबास।
दुश्चरित्र दुर्गंध को ,छिपा न पाता खास।
गया भागकर कीच में,करने देह पवित्र।
सूअर पर छिड़का गया,जब जब सुरभित इत्र।।
वो क्यों चिंता करेगा,कट जाएगी नाक।
जिसके जीवन का रहा,मल अरु मैल खुराक।।
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