सगरी मित्र लोगन के राम राम!एगो गीतिका समर्पित करत बानी।रउवा सभे के सनेह सादर अपेक्षित बा।
सिरजब अगर नया कुछ,दिल भी ई दाद दी।
जिनगी के खेत खातिर,पानी आ खाद दी।
जिनगी हमेसा लागे,छिलका पियाज के,
छीलीं त कुछ ना पाएब,छेउकीं त स्वाद दी।
चाहत हईं खुशी त,दोसरो के दीं खुशी,
कुंठा हमेसा दिल में,केवल विषाद दी।
ह प्रेम त्याग केवल,लेला ना कुछ कबो,
पावे के तनिको इच्छा,मन में विवाद दी।
पतझड़,बहार जईसन,जिनगी के कहानी,
दुख दी कबो त कबहूँ,खुशियन से लाद दी।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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