वंदे मातरम्!
कविता
अगर फूल है
तो महकना जरूरी है,
अगर काँटा है
तो चुभना जरूरी है।
अगर खोई हुई दौलत है
तो ढूढ़ना जरूरी है।
कविता गुबार है अगर
आँखों से बहना जरूरी है।
चहक है अगर चिड़िया की
तो फुदकना जरूरी है।
नदी है अगर कविता
तो बहना जरूरी है।
पेड़ है कविता अगर
तो छाया देना जरूरी है।
वैसे कविता की समझ
कष्ट का पराभव है।
जैसे नीम की पत्तियों में
मधु निमज्जित पका आसव है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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