वंदेमातरम्!मित्रो!एक ग़ज़ल हाज़िर है।
कहने भर से तूफान,नही आता।
कदमों में आसमान,नही आता।
नही जलता है खुद चूल्हा जब तक,
दूध में उफान,नही आता।
अंधेरी रात को बस कोसने से,
सुनहला विहान,नही आता।
काम आते हैं पास वाले ही,
ऐन वक्त जहान,नही आता।
ख़ुदा गर सोचता नहीं बेहतर,
जमीं पर इंसान,नही आता।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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