वन्दे मातरम्!मित्रो!एक समसामयिक मुक्तक हाज़िर है।अच्छा लगे तो आपकी सार्थक टिप्पणी चाहूँगा।
तुम मज़हब के ज़हर मुल्क में,घोल गए क्यों?हामिद जी!
पद का ख्याल मिटा टुच्चे-सा,बोल गए क्यों?हामिद जी!
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी,........खेल घिनौना खेलोगे,
जाते जाते पोल यूँ अपना,खोल गए क्यों?हामिद जी!
डॉ मनोज कुमार सिंह
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