राम राम !एगो गज़ल हाज़िर बिया।
नेक इरादन पर जब जब,पत्थर मरबS तू।
दावा बा अपमान सहित,खुद ही हरबS तू।
मालूम बा खुद के पावनता सिद्ध करे में,
धूर,गंदगी,गंगा में निश्चित झड़बS तू।
आग घृणा के रोज लगावेलS, बतलावS,
दीया नेह के जोत हिया में,कब बरबS तू।
पाँव स्वार्थ के जेतना फइलईब,समझि लS,
रिश्तन के चादर ओतने,जादा फड़बS तू।
कालनेमि बइठल जब,खुद तहरा हियरा में,
का मरब दोसरा के,एक दिन खुद मरबS तू।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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