Saturday, September 16, 2017

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

जितना ज्यादा मैं,मानस मंथन करता हूँ।
जीवन के संग उतना,मनोरंजन करता हूँ।
खंजन की चंचल चितवन-सी,मधुर ताल पर,
भ्रमर गुंज-सा मधुरित,अपना मन करता हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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