वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
कश्मीरी मसलों पर जो,तलवार दोधारी रखती है। ये कैसी महबूबा है, दुश्मन से यारी रखती है। न जाने कुछ लोग यूँ क्यों,उम्मीद लगाए बैठे हैं, मुख पर नकली राष्ट्रप्रेम,दिल में गद्दारी रखती है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment