वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
अश्क से सींचा,..मुहब्बत का शजर....जिसने यहाँ,
खुश्बुओं से तर वही,....फलते रहे,.....फूलते रहे।
गीत सदियों से वहीं,....जिंदा रहे हैं....आज तक,
जो हृदय में ..आत्मस्वर का,..दीप बन जलते रहे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment