Saturday, September 16, 2017

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!आप सभी को राजभाषा हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

हिंडी हिंडी कर रिया,कंट्री का अंदाज़।
हैपी हिंडी डे तुम्हें,ऑफिस बाबू आज।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

वक्त बुनता ताना बाना सही सही।
होता उसका अचूक निशाना,सही सही।
जस करनी तस भरनी निश्चित है जानो,
जीवन का भी यहीं फ़साना सही सही।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्देमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक विडंबनाओं के नाम।

केरल स्वच्छम् कहने वाला,पाक साफ।
नक्सलियों संग रहने वाला,पाक साफ।
सीमा पर मरने वालों से,मोह नहीं,
राष्ट्रद्रोह नित करने वाला,पाक साफ।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्देमातरम्!मित्रो!आज मेरा खुरदुरे यथार्थ पर आधारित एक मुक्तक हाज़िर है।

चले थे हम कहाँ से,और कहाँ तक आ गए।
हुए हम बेहया इतने, हया तक खा गए।
तहर्ररुश हो गया फैशन,हमारे मुल्क में जबसे,
चील,कौए भी जिसको,देखकर शरमा गए।।

(तहर्ररुश-गैंगरेप/सामूहिक बलात्कार)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक भोजपुरी

राम राम।एगो मुक्तक हाजिर बा।

कनस्तर ढोंग के आपन,बजा के राखेलें।
आपन दोकान उ रोज,सजा के राखेलें।
जहाँ फेंड़ ना खूंट उहाँ रेड़ परधान,जइसन,
अपना आस पास उ मेला,लगा के राखेलें।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!चीन और पाकिस्तान पर भारत को विश्वास करना आत्महत्या के समान है।एक मुक्तक हाज़िर है।

बात जब होने लगी है,तोप की तलवार की।
कैसे होगी बात बोलो,प्यार की,मनुहार की।
जिसकी नीयत में सदा,खंजर हमारी पीठ पर,
ऐसे में कैसे कबूलूँ दोस्ती गद्दार की।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

ग़ज़ल

वन्दे मातरम्!आज एक ग़ज़ल हाज़िर है।

हैं जो बेहुनर खुद,....हुनर सिखाने आ गए।
बेअदब लोग कुछ,अक्सर सिखाने आ गए।

चोट के दर्द का जो,व्याकरण समझते नहीं,
ग़ज़ल में मुझको वे ,बहर सिखाने आ गए।

घृणा दिल में ,मुस्कान चेहरे पर बिछाकर,
मित्र कुछ प्यार के,अक्षर सिखाने आ गए।

हौसले नाप न दें,...आसमानों की ऊँचाई,
सारी दुनिया के पिंजरे,डर सिखाने आ गए।

मानी जिसने नहीं, जिंदगी में बात उनकी,
हो गए किस तरह,बेघर सिखाने आ गए।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आलेख

वन्दे मातरम्!मित्रो!मेरे इस पोस्ट पर आपकी अमूल्य टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

"जब जब होहि धरम की हानी"
.........................................

धर्म को बाबा मार्क्स ने कभी अफीम
कहा था।कबीर ने भी ईश्वर भक्ति को
सबसे बड़ा अमल (नशा) कहा है।सच है
धर्म और ईश्वर भक्ति सर्वश्रेष्ठ अफ़ीम और अमल ही हैं,जिसके आगे दुनिया का कोई भी
नशा असर नहीं करता,मीरा ने इसे
अपने जीवन में सिद्ध भी किया 'विष का प्याला राणा भेज्या पीवत मीरा हाँसी।' लेकिन कुछ नटवरलाल टाईप ठग लोग
दुनिया में चिलम, गाँजा, चरस,सुल्फा,मारिजुआना,एलएसडी, भांग,शराब,अफीम,मैथुन,मूल्यहीनता, झूठ मक्कारी,फरेब,अनैतिकता का
सहारा लेकर धर्म की दुनिया मे प्रवेश कर जाते हैं
और संत का मुखौटा लगाकर भोली भाली
जनता को ठगने लगते हैं।
फिर कहा गया है न कि अति सर्वत्र वर्जयेत।
जब ऐसे व्यक्ति का भांडा फूटता है तो
यहीं दुनिया उससे प्रेम की जगह
घृणा करने लगती है।धर्म,संस्कृति और अध्यात्म
भारत की असली पूँजी हैं।
इसी से यह देश विश्व में जाना भी जाता रहा है।
अगर कोई हमारे ऋषियों, महर्षियों,संतों के
धर्म रूपी हेरिटेज को
नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा
तो वह बच नहीं पायेगा।
इस विश्वास को न्यायालय भी आज
मजबूत कर रहे हैं।
इस पोस्ट के बहाने भारत के उच्चतम न्यायालय के नए मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्र जी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयाँ।
हमें विश्वास है कि आप धर्म को
न्याय दे सकेंगे और करोड़ों जन हृदय को
नैतिक होने की प्रेरणा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

चलिये 10+10=20साल की सज़ा और 30लाख ऊपर से।
30 लाख पीड़ित बहनों को दिया जाएगा।एक दोहा हाज़िर है।

तन-मन से रावण लगे,जैसे राम रहीम।
ऐसे छलियों से सदा ,होता धर्म यतीम।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

तीन दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!तीन दोहे हाज़िर है।

बाबा राम रहीम का,खत्म हो गया खेल।
बेचेंगे अब जेल में,यौवन वर्द्धक तेल।।

बाबा के गुंडे किये,जितना भी नुकसान।
लगे नहीं करतूत से,इंच मात्र इंसान।

डेरे की संपत्ति की,जब्ती की दरकार।
भरपाई नुकसान का,बेच करे सरकार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

जब से कुछ ने जाति का,भाषा का ठेका ले लिया।
सियासत ने मुल्क में,तमाशा का ठेका ले लिया।
चाहकर भी दे नहीं सकता,उजाला सूर्य भी,
आसमां ने जब से,कुहासा का ठेका ले लिया।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाज़िर हैं।अगर ये दोनों दोहे सत्य के करीब हैं,तो आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

कवि हुए बस तीन ही,दो हैं ब्रह्मा,व्यास।
वाल्मीकी तीसरे कवि,शेष सभी बकवास।।

वेद,महाभारत रचे,रामायण कवि मूल।
उस पर ही उगते रहे,रचनाओं के फूल।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।

अलग ये बात है कि मैं कोई अफसर नहीं हूँ।
फिर भी कोई किसी के बाप का नौकर नहीं हूँ।
पाँव फैला के मेरे जिस्म पर बैठना न कभी,
तवा हूँ दहकता मैं,सेज का बिस्तर नहीं हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

वे हमको आजमाते ............आ रहे हैं।
हम भी रिश्ते निभाते............आ रहे हैं।
कभी ये फट न जाए....... मन यूँ बम-सा,
पलीते धैर्य के...कब से बचाते..आ रहे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक समसामयिक मुक्तक हाज़िर है।अच्छा लगे तो आपकी सार्थक टिप्पणी चाहूँगा।

तुम मज़हब के ज़हर मुल्क में,घोल गए क्यों?हामिद जी!
पद का ख्याल मिटा टुच्चे-सा,बोल गए क्यों?हामिद जी!
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी,........खेल घिनौना खेलोगे,
जाते जाते पोल यूँ अपना,खोल गए क्यों?हामिद जी!

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

जितना ज्यादा मैं,मानस मंथन करता हूँ।
जीवन के संग उतना,मनोरंजन करता हूँ।
खंजन की चंचल चितवन-सी,मधुर ताल पर,
भ्रमर गुंज-सा मधुरित,अपना मन करता हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।एम ए प्रथम वर्ष का मेरा एक फोटो भी हाज़िर है।

अक्षर ब्रह्म है गर,तो उसी का वास्ता है।
मैं हूँ जिस राह पर,समझो खुदा का रास्ता है।
पल पल कर रहा, चिंतन उसी का मन,हृदय से,
वहीं अब जिंदगी का खाद,पानी,नाश्ता है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

घृणा मेरे प्रति रखकर यूँ,अपने दिल मे हरदम,
अपने आप को.............समझते हो क्या तुम?
तुझ-से नापाक इन्सां की,थोड़ी इज्जत क्या कर दी,
समझने लग गए,................खुद को खुदा तुम?

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!ये दोहा कितना सार्थक है आप भी कुछ बोलिये।

जैसे आज नीतिश ने,मारा धोबी पाट।
लालू-रावण राज की ,खड़ी हो गई खाट।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी ग़ज़ल

राम राम !एगो गज़ल हाज़िर बिया।

नेक इरादन पर जब जब,पत्थर मरबS तू।
दावा बा अपमान सहित,खुद ही हरबS तू।

मालूम बा खुद के पावनता सिद्ध करे में,
धूर,गंदगी,गंगा में निश्चित झड़बS तू।

आग घृणा के रोज लगावेलS, बतलावS,
दीया नेह के जोत हिया में,कब बरबS तू।

पाँव स्वार्थ के जेतना फइलईब,समझि लS,
रिश्तन के चादर ओतने,जादा फड़बS तू।

कालनेमि बइठल जब,खुद तहरा हियरा में,
का मरब दोसरा के,एक दिन खुद मरबS तू।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक दोहा फिर हाज़िर है।

जो खोने लगता सतत्,अपनों का सद् प्यार।
दुनिया से मिलती उसे,इक दिन बस दुत्कार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक समसामयिक दोहा हाज़िर है।

ऋग्वेद जिसको कहा,पावन सदा अघन्य।
हत्या कर कुछ कर रहे,भक्षण कर्म जघन्य।।

(शब्दार्थ- अघन्य-गाय, जघन्य-घृणित)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

मजहबी सियासत की,लड़ाई चल रही है।
खूरेंजी विरासत की,लड़ाई चल रही है।
आज किताबों की......... दुहाई देकर,
दुनिया पर हुकूमत की,लड़ाई चल रही है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी गजल

राम राम!एगो गज़ल हाज़िर बिया।

केकरा के गोहरावत बानी।
माथा कहाँ झुकावत बानी।

अनजाने में ही का रउवा,
खुद के ना भरमावत बानी?

सपना तुरि दिहल जे राउर,
ओकरे गीत सुनावत बानी।

अंधभक्ति में सच जाने बिन,
पत्थल के सोहरावत बानी।

सच के महल उठी कइसे जब,
झूठ के नींव खोनावत बानी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी गजल

राम राम!एगो गज़ल हाज़िर बिया।

केकरा के गोहरावत बानी।
माथा कहाँ झुकावत बानी।

अनजाने में ही का रउवा,
खुद के ना भरमावत बानी?

सपना तुरि दिहल जे राउर,
ओकरे गीत सुनावत बानी।

अंधभक्ति में सच जाने बिन,
पत्थल के सोहरावत बानी।

सच के महल उठी कइसे जब,
झूठ के नींव खोनावत बानी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!जीवन के कड़वे सच को एक मुक्तक
के माध्यम से समर्पित कर रहा हूँ।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

प्रेम-विरह की द्वन्द्व भूमि पर,दाहक पल पल हो जाता है।
हरदम सब कुछ याद करो तो,जीना मुश्किल हो जाता है।
विस्मृतियों के तमस पृष्ठ पर,नींद नही ले पाए गर तो,
ज्योतिपुंज के अतिरेकों से जीवन पागल हो जाता है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!जिस तरह देश मे साजिशों का दौर जारी है,विधानसभा में DETN पाया जा रहा है,उसी पर दुश्मनों के लिए भी एक चेतावनी है, जिसे मुक्तक के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

बिगाड़ेगा फ़िजा जो भी,हमारे मुल्क का यारों,
उसे हम ढूढ़कर सड़कों पे ला,बदशक्ल कर देंगे।
मुखौटे डाल बैठे भेड़ियों के,बद इरादों का,
किसी क़ातिल-सा निश्चित मानिए,हम कत्ल कर देंगे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

ग़ज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ग़ज़ल हाज़िर है।

किसी गुनाह में,कभी शामिल नहीं लगता।
कत्ल करके भी वो,क़ातिल नहीं लगता।

जबसे दरबार में,नजरें मिलाकर बात की है,
होके क़ाबिल भी मैं,क़ाबिल नहीं लगता।

वक्त की ठोकरों ने,भर दिया साहस इतना,
जीना दर्द में भी,अब मुश्किल नहीं लगता।

खुशी थी,चाह थी, मित्रों से कभी मिलने की,
उनकी महफ़िल में,अब ये दिल नहीं लगता।

कभी सुलझेंगे मुद्दे क्या,तअस्सुब से वतन के,
ऐसा फिलहाल तो,मुस्तकबिल नहीं लगता।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्! इस सत्र में भारतीय सेना द्वारा 102 आतंकियों को ढेर करने पर एक मुक्तक फिर।

केसर की क्यारी के जो हत्यारे हैं।
दिल में जिनके सभी इरादे कारे हैं।
पत्थर ,गोली के जवाब में बेटों ने,
एक शतक से ज्यादे छक्के मारे है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।

जब भी दिल पर,चोट होती है अतल।
दर्द का अनुवाद भी,होता विरल।
मरुथली आँखों में,तब लिखते हैं हम,
आँसुओं के हर्फ से ज़ख्मी गज़ल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

ग़ज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो एक ग़ज़ल हाज़िर है।

मत खुद को शर्मिन्दा कर।
प्यार दिलों में जिन्दा कर।

नफरत के अँधियारों में,
इक चराग़ ताबिन्दा कर।

जिन बातों से दिल टूटे,
ऐसा मत आइन्दा कर।

कुंठा के पिंजरों को तोड़,
मन को मुक्त परिन्दा कर।

सच जिन्दा रखना है तो,
झूठ की हर पल निन्दा कर।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम!एगो मुक्तक हाज़िर बा।

आतंकिन पर कतहूँ ना,बोलेलें देखनी मियाँ जी।
केहू अब्बा,केहू चच्चा,केहू लागे,जीजा जी।
धीरज छूट रहल बा अब त,पानी सिर से पार भईल,
कबले मारल जइहें बोलीं,सुअरन के भतीजा जी।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

कश्मीरी मसलों पर जो,तलवार दोधारी रखती है।
ये कैसी महबूबा है, दुश्मन से यारी रखती है।
न जाने कुछ लोग यूँ क्यों,उम्मीद लगाए बैठे हैं,
मुख पर नकली राष्ट्रप्रेम,दिल में गद्दारी रखती है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

ग़ज़ल

वंदेमातरम्!मित्रो!एक ग़ज़ल हाज़िर है।

कहने भर से तूफान,नही आता।
कदमों में आसमान,नही आता।

नही जलता है खुद चूल्हा जब तक,
दूध में उफान,नही आता।

अंधेरी रात को बस कोसने से,
सुनहला विहान,नही आता।

काम आते हैं पास वाले ही,
ऐन वक्त जहान,नही आता।

ख़ुदा गर सोचता नहीं बेहतर,
जमीं पर इंसान,नही आता।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

ॐ श्रीगुरूवे नमः!!💐💐

अँधेरे से उजाले की तरफ,जो भेज देता है।
मिटा अज्ञान को,सद्ज्ञान का जो सेज देता है।
गुरु ही है जो,अपनी कृपा दृष्टि से हमारी,
बिखरती जिंदगी को,मुफ्त में सहेज देता है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!आप सभी को गुरुपूर्णिमा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयाँ!मैं अपने गुरुजनों को सादर नमन करते हुए एक दोहा प्रस्तुत कर रहा हूँ।

क्या दूँ मैं गुरुदक्षिणा,कैसे दूँ सम्मान।
जो कुछ है तेरा दिया,मेरी क्या पहचान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

आज नहीं तो निश्चित ही कल,हो ही जायेंगे।
गुजरे हुए जमाने ओझल,हो ही जायेंगे।
अँधियारों की साजिश को,गर तोड़ नहीं पाए,
इक दिन सबल उजाले,निर्बल हो ही जायेंगे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

पापा चारा,...बेटा लारा,..सा..रा.. रा..रा..रा।
सीबीआई ने छापा मारा,..सा..रा..रा..रा..रा।
घोटालों में डूबा हुआ है,खानदान पूरा जिनका,
उनको कब तक होगा कारा,..सा..रा..रा..रा..रा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

अश्क से सींचा,..मुहब्बत का शजर....जिसने यहाँ,
खुश्बुओं से तर वही,....फलते रहे,.....फूलते रहे।
गीत सदियों से वहीं,....जिंदा रहे हैं....आज तक,
जो हृदय में ..आत्मस्वर का,..दीप बन जलते रहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

अश्क से सींचा,..मुहब्बत का शजर....जिसने यहाँ,
खुश्बुओं से तर वही,....फलते रहे,.....फूलते रहे।
गीत सदियों से वहीं,....जिंदा रहे हैं....आज तक,
जो हृदय में ..आत्मस्वर का,..दीप बन जलते रहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आलोचना आ कि आलू चना

राम राम मित्र लोगन के!आजु एगो हमार आलेख रउवा सब खातिर समर्पित बा।अच्छा लागे त आपन विचार जरूर देहब।

'आलोचना आ कि आलू चना'
........................................

अधिकतर आदमी के आपन
एगो बहुत बड़ कमजोरी होला कि
उ आपन आलोचना ना सुनेके चाहेलन।
आलोचना के सुनल आ
ओकरा के स्वीकारल बड़ा मुश्किल काम होला।
हालाँकि इहो बात साँच बा कि
उ आलोचना भले ओह व्यक्ति के व्यक्तित्व के
बढ़ावे में सहायक होखे,
फिर भी ओकरा के स्वीकारल
सबके बूता के बात ना होला।
आलोचना दुधारी तलवार के नियर होले,
जवना में एक तरफ रउवा एकरा आधार पर
आपन झूठ अहं के दरकिनार करिके
गहिर समझ-बुझ विकसित कर सकता बानी,
त दोसरा तरफ आलोचना करे वाला आदमी से
आपन संबंध भी बिगाड़ सकत बानी।
ई बात व्यक्ति विशेष पर निर्भर करेला कि
उ आलोचना के कइसे लेता।
उ आदमी आलोचना से आपन विकास करत बा
या झूठे अहं में डूब के अपना के सही मानत बा।

आलोचना एगो सलाह भी होला।
अउरी एकरा के जरिसोरि से
मेटावे से बढ़िया बा कि जवन सही बात बा
ओकरा के आत्मसात कईल जाव
आ अपना विकास में ओकर लाभ उठावल जाव।
एही क्रम में इहो बतावल जरूरी बा कि
निर्णायक क्षमता के बेहतर इस्तेमाल करिके
उहे बात स्वीकार करीं ,
जवन रउवा पर लागू होत बिया।
अईसन ना होखे कि आलोचना के
उहो हिस्सा जवन रउवा पर लागूवे नईखे होखत,
ओहू के लेके के बिना वजह परेशान बानी
आ अन्हरिया के कूकुर नियर अन्हासो भूकत बानी।

आलोचना भी दू तरह के होला।
पहिला के उद्देश्य
व्यक्ति के कमी सामने लाके ओकरा के दूर कईल बा
आ दूसरका खाली डाह, इर्ष्या,जलंसी से ग्रसित होला।आज जरूरत बा एह अंतर के समझे के।
कमीयन के इंगित करत
यानी सकारात्मक आलोचना के
अंगीकार करे के जरूरत बा,
त ओही जा नकारात्मक आलोचना
अउरी ओके करे वाला से दूरी बनावे में ही भलाई बा।झूठे टकराव ठीक ना होला।
एह गर्मी में कूलर आ एसी रूम में बईठ के
साइबर कलम से किसान के काम
आ जेठ के धूप पर कविता आ कहानी लिखल
केतना धारदार होई एह के समझल जा सकेला।
कुछ सुविधा परस्त लोग भी
शहर में बईठ के खेत
आ मेड़ के साहित्य रच रहल बा।
आजकल भोजपुरी के विकास
आ उत्थान खातिर खाली दू चार गो गोष्ठी,
बईठकी आ नाच गाना के सहारे
नारा लगावल जा रहल बा।
कवनो भासा के इज्जत
ओकरा साहित्य पर टिकल होला।
उहे नींव होला अपना लोक परंपरा आ संस्कृति के।
गाल बजवला आ देखावा से नीमन बा
अपना लोक भासा में कवनो सृजन कईल जाव।
भासा पर भी हम कहब कि साहित्य में
ग्राम भासा(अशिष्ट भासा/ठेठ)के
कम प्रयोग करे के चाहीं ,
उहो तब जब प्रासंगिक लागे।
काहे कि दुनिया के कवनो भासा जवना
रूप में बोलल जाले ओइसने ना लिखल जाले।
शिष्ट भासा के प्रयोग साहित्य के सृंगार होले।
कुछ लोग भोजपुरी गद्य लेखन में अशिष्ट (गँवार/धराऊँ)/ठेठ सब्दन के जानबूझ के प्रयोग करेलें कि
लोग जानो कि उ बहुत बड़ विद्वान हउवन।अइसन प्रयास पहिलहू भईल बा,बाकिर समाज मे ओकरा मान्यता न मिलल।
अइसन सब्द सब्दकोष के हिस्सा त हो सकेला,
बाकिर साहित्य में शुद्ध सात्विक
आ मानक सब्दन के प्रयोग उचित कहाला।
अगर रउवा भोजपुरी साहित्य के
गरिमा बढ़ावे के चाहतानी
त शिष्ट भासा के प्रयोग करीं
आ ओकरा साहित्य के अपना
सृजनात्मक लेखन से समृद्ध करीं।
भासा आ साहित्य के आलू चना लेखा
भून के खाली पगुराईं मत। भोजपुरी के भी बहुते नुकसान हो रहल बा।
बाकी सब कमी धीरे धीरे
अपने आप खतम हो जाई।एगो अपना दोहा के साथे एह बात के विराम देत बानी कि-

संस्कृति के पहचान के,सबसे सुन्नर नेग।
भासा जब साहित्य के,ओर बढ़ावे डेग।।

डॉ मनोज कुमार सिंह