Wednesday, July 5, 2017

गज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

कठिन सवालों को अपने,जो हल कर लेता है।
जीवन की खाई समझो,समतल कर लेता है।

मुश्किल से घबरा जिसने,मुख मोड़ लिया यारों,
अच्छे खासे जीवन को,दलदल कर लेता है।

बहुत नहीं पाया प्रकाश,पर जितना भी पाया,
जुगनू अपना तम रोशन,हर पल कर लेता है।

जब आँखों की धरती में,सूख जाता है पानी,
मन विह्वल होकर खुद को,बादल कर लेता है।

सच की राहों पर चलना,पागलपन कहलाता,
फिर भी खुद को एक कवि,पागल कर लेता है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment