वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गज़ल हाज़िर है।
असलहे लेकर,घृणा औ क्रोध के।
जंग हम लड़ते रहे,प्रतिशोध के।
जाने क्यूँ हम, भूल गए इंसानियत,
काट डाले तार,मन के बोध के।
प्यार के रिश्ते ,न जाने गुम कहाँ,
कब करेंगे कर्म,उसके शोध के।
नागफनियों से सजे, गमले सभी,
है यहीं उपलब्धि,संप्रति पौध के।
रूठ जाना और मनाना,जिंदगी थी,
हैं कहाँ वे दिन,मधुर अनुरोध के।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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