वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताज़ा गज़ल हाज़िर है।
तुमसे मिलकर,सच कहानी हो गई।
दिल की बस्ती,राजधानी हो गई।
मुस्कुराते होंठ से,नजरें मिलीं,
चुपके चुपके,छेड़खानी हो गई।
तेरी खुश्बू की, मधुर स्पर्श से,
हवा पूरी ,जाफरानी हो गई।
जिंदगी के भँवर में,तिनका सरीखी,
मुहब्बत की,मेहरबानी हो गई।
मचलकर चलती,लहर पर आज भी,
नाव ये जबकि,पुरानी हो गई।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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