वंदे मातरम्!मित्रो! जिस देश मे श्रद्धा को मानसिक अंधता,नम्रता को कमजोरी समझा जाए और मनुष्य की योग्यता का अपमान किया जाए,उस देश को गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता।तथाकथित आधुनिकता की बुद्धिजीवी तबेलों का चाल,चरित्र,चेहरा धीरे धीरे सामने आ चुका है।महास्वार्थी परिवेश का नियमन किया जा रहा है।यूज एन्ड थ्रो का अस्वस्ति आचरण रग रग में पैवस्त किया जा रहा है।रिश्तों में जोंक और खटमल के रक्तचूषक प्रहसन जारी हैं।ढकोसलों और ढिमचिक प्रोपगैंडा का बाजार गर्म है।सियासत संसद से सड़क तक निर्लज्जता की निर्वस्त्र नर्तकी बन चुकी है।अधर्म ही धर्म ,कुकर्म ही सुकर्म के पर्याय बन चुके हैं।अनीति का ऐसा दबदबा है कि नीति,सड़क पर किसी ट्रक के चक्के के नीचे आए किसी आवारा कुत्ते की किकियाहट भर लगती है,जिसकी सड़क की अदालत में कोई सुनवाई नहीं होती। देश में अचानक देशद्रोही दुःशासनों की संख्या बढ़ गई है,जो माँ भारती के चीरहरण में सतत् प्रयत्नशील हैं।अब जन कृष्ण को माँ भारती की प्रतिष्ठा बचाने के लिए आगे आना होगा और अपने ही मंत्र -"यदा यदा हि धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य,तदात्मानं सृजाम्यहम्।" को चरितार्थ करना होगा।आसुरी शक्तियों का समूलोच्छेद करने के लिए "शठे शाठयम् समाचरेत्" का नित्य पाठ जरूरी है।तभी मनुष्यता के बीजमंत्र श्रद्धा,नम्रता और योग्यता का संरक्षण संभव है।हमारा लक्ष्य 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम!' हो।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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