Tuesday, July 4, 2017

गज़ल

वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गज़ल हाजिर है।

अलग ये बात है,तेरी बात से सहमत नही हूँ।
इसका मतलब नहीं,कि तेरी मुहब्बत नहीं हूँ।

छुपा मत चेहरा,आँखे मिलाकर देख मुझको,
सच का बस आईना हूँ,मैं कोई दहशत नहीं हूँ।

बुरा लगता है मेरा टोकना,तुझको शायद,
सोच कर देखना,मैं कत्तई गलत नही हूँ।

नोंच कर खा गए रिश्ते,जो कुर्सियों के लिए,
इतनी बेशर्म-सी मैं,नीच सियासत नही हूँ।

जबसे बेईमानियों से,लोग ऊँचे उठ रहे हैं,
मैं हूँ ईमान,अब इन्सां की जरूरत नहीं हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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