Tuesday, July 4, 2017

पचलत्ती राग में आन्हा टोपी छंद(भोजपुरी कविता)

राम राम सब मित्र लोगन के!एगो रचना रउवा अदालत में हाजिर बिया।अच्छा लागे त टिप्पणी जरूर करीं।ई रचना कवनो नेता पर सटीक बईठ जाव त संजोग समझेम।

पचलत्ती राग में आन्हा टोपी छंद
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लागे गलियन के लोफर ह।
घुनल गहूँ के चोकर ह।
भासा ओकर लागे जइसे,
ई नेता ना ह जोकर ह।

ह महाबेहाया लतखोरी।
हर बात में ओकरा बरजोरी।
दिल से भड़भड़िया टीना ह।
पर मन से बहुत कमीना ह।

ई हरबोलिया पिल्ला झबरा ।
ह एक लमर बड़का लबरा ।
सुअर के लागे छौना ह।
खटमल से भरल बिछौना ह।

ई पीटउर नाल नागाड़ा ह।
मरखाह भईंस के पाड़ा ह।
ह ई जबान के फटफटिया।
राखेला सोंच सदा घटिया।

बकलण लइकन के बप्पा ह।
खानदानी चोर उचक्का ह।
ई लूटतंत्र के अगुआ ह।
असली चरित्र में ठगुआ ह।

केतना चारा ई खाय गईल।
ई हवालात घुमि आय गईल।
असली घर एकर जेल हवे।
पर राजनीति के खेल हवे।

अपहरण लूट के धंधा बा।
हर कांड में एकर कंधा बा।
भलही रउवा ना पतियाएब।
आईं बिहार समझि जाएब।

मीडिया के रोज घघोंटेला।
पीछे से लेकिन पोटेला।
घूरा पर जमल लमेरा ह।
असली भेड़ी के भेड़ा ह।

सुशासन के ई दुस्सासन।
देला बस जहरीला भासन।
बमलेट बहेंगवा बदजुबान।
खाला खैनी,कचरेला पान।

ई अपराधिन के ह चाचा।
दुश्मन के खा जाला काँचा।
मत समझीं सीमित बिहार तलक।
चेला फइलल तिहाड़ तलक।

ई बहुत भाग्य के चाँण हवे।
सत्ता में बईठल साँढ़ हवे।
ह जाति समर्थक ई नेता,
ओही के लाभ अभी लेता।

ह ई बिहारियन के कलंक।
मारे इज्जत पर रोज डंक।
भैसासुरन के नेता ह।
पड़वन के बहुत चहेता ह।

हो गईल बहुत हल्ला गुल्ला।
कबले चाँपी ई रसगुल्ला।
भौंकत कुक्कुर ई तबे डरी।
काला सम्पति पर लट्ठ पड़ी।

तबही बिहार के न्याय मिली।
जब जेल में जाके प्याज छिली।
हे ईश्वर कब उ दिन आई।
परिवार सहित अंदर जाई।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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