वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल हाजिर है।अच्छी लगे तो आप अपनी टिप्पणी से ऊर्जा जरूर दीजिये।
बनाना मत कभी भी,ऐ खुदा!मगरूर मुझको।
तू रखना जिंदगी भर,आदमी भरपूर मुझको।
अगर सच बोलने से,मैं अकेला पड़ गया तो,
अकेला ही चलूँगा,शर्त ये मंजूर मुझको।
समंदर की अतल,गहराइयों का हूँ चहेता,
नहीं होना हिमालय-सा,कभी मशहूर मुझको।
मैं दर्पण हूँ दिखाता हूँ, यूँ चेहरों की हकीक़त,
मेरी फ़ितरत है ये,रख पास या रख दूर मुझको।
झुकी है कब फ़कीरी,वक्त के आगे बता दो,
डराने के लिए तू,मूर्ख-सा मत घूर मुझको।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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