Tuesday, July 4, 2017

जाति विमर्श..

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज कबीर को साक्षी मानकर अपना  एक विचार रख रहा हूँ ।इससे सहमत होना या न होना आपका अधिकार है।

कबीरदास कहते हैं-

जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान।

संविधान कबीर के कथन के ठीक उल्टा सरकारी सेवाओं में पूछता है-
तुम्हारी जाति क्या है?
तुम्हारा धर्म क्या है?

ज्ञान गया तेल लेने।

अब समझ मे नहीं आता कि कबीर सही कह रहे हैं या संविधान।

जबकि कबीर एक मौलिक कवि,समाज सुधारक और आला दर्जे के संत थे,और संविधान दुनियाभर के संविधानों का अधिकतर कॉपी पेस्ट।
अब आप ही बताएँ कि
जाति,धर्म की बात करना सही है या ज्ञान की ?

जाति,धर्म को वरीयता मिलनी चाहिए या ज्ञान को?

क्योंकि कुछ मुफ्तखोर लोगों ने स्वार्थ में बेशर्मी की इतनी मोटी खाल अपने उपर ओढ़ रखी है कि उनपर वक्रोक्ति का कोई असर ही नहीं पड़ता।कुछ बातें तो उनके समझ मे भी नहीं आतीं,उस पर भी भौंकना नहीं भूलते।
एक बात बहुत मार्के की कही गई है कि जिस देश मे पुस्तकें फुटपाथ पर और जूते शोरूम में सजाकर रखी जाएं तो देश को अधोगति की ओर जाने से कोई नही रोक सकता।बिहार में सभी विद्यार्थी फेल हो रहे हैं और इधर 8वी फेल को डॉक्टरेट की उपाधि दी जा रही है। वाह !

डॉ मनोज कुमार सिंह

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