Tuesday, July 4, 2017

यथायोग्य कार्य व्यवस्था ही मानवीय न्याय है(आलेख)

वंदे मातरम्! मेरे ही एक पोस्ट पर किसी को दिया गया जवाब।आपकी टिप्पणी सादर आमंत्रित है।

यथायोग्य कार्य व्यवस्था ही मानवीय न्याय है।
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क्या देश मे यथायोग्य कार्य व्यवस्था नहीं होनी चाहिए?राजकिला ही नहीं हमारा आपका घर भी मजदूर के सहयोग से  बनता है,लेकिन जो मजदूर होता है वह बालू गारा मिलाता है और राजमिस्त्री को देता है।राजमिस्त्री इंजीनियर के नक्शे के अनुसार ईट जोड़ता है।घर की पुताई रंगाई कोई और करता है।लेकिन केवल पुताई वाले से कहा जाए कि तुम ईंट जोड़कर मकान बनाओ जबकि उसको पुताई के अलावा और कुछ नही आता।और अगर वह काम करेगा भी तो अनुभव और अज्ञानता में गड़बड़ी होने की आशंका क्या नहीं रहेगी?वैसे योग्यता का कोई पैमाना नही बात सकता लेकिन जो जिस कार्य मे दक्ष (योग्य)है उसे उसमे वरीयता मिलनी चाहिए।योग्यता जाति पूछकर नहीं आती।वह कहीं भी किसी भी जाति धर्म,परिवार,व्यक्ति का हिस्सा हो सकती है। हाँ जो लोग अत्यंत गरीबी और भुखमरी के सचमुच शिकार हैं ,लाचार हैं,अपंग है,बेसहारा हैं,शोषित वंचित हैं उनके लिए
सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि उक्त लोगों की पीड़ा और कष्ट को कैसे दूर किया जाय और सहायता कर स्वावलंबी बनाया जाय।रोगी को दवा जरूरी है ।स्वस्थ होने के बाद कोई डॉ उसे वहीं दवा खाने के लिए क्या कह सकता है?नहीं न! उसी तरह जो लोग आर्थिक और सामाजिक स्तर पर उन्नति कर चुके हैं उन्हें उस कोटे से हटा देना चाहिए जिससे वास्तविक  गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को लाभ मिल सके।अगर ब्राह्मण ठाकुर का लड़का जूता बनाने लायक है तो उसे वहीं काम करना चाहिए और कोई दलित(राजनीतिक शब्द)का लड़का संस्कृत पर आधिकारिक ज्ञान रखता है तो उसे प्रोफेसर बनाया जाय।और यही योग्यता का सम्मान भी है।लेकिन केवल किसी भी तरह लाभ पाने के लिए योग्य व्यक्ति को यथोचित काम न मिले तो समाज मे असंतोष तो बढ़ेगा ही।जब इस देश को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया है तो हर नागरिक समान अधिकार संविधान में देने की बात जरूर की गई है जिसमे वोट करने का भी अधिकार है लेकिन 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति वोट नही कर सकता।अगर समानता की बात की जाय तो 130 करोड़ के देश मे मात्र सवा करोड़ लोग ही आयकर देते हैं और साढ़े तीन करोड़ लोग बस दायरे में आते हैं।टैक्स तो सभी को देना चाहिए था?लेकिन नही देते हैं।अधिकार समानता की तरह ही कर्त्तव्य समानता होनी चाहिए।इसी सवा करोड़ के टैक्स से देश चलता है और शेष लोग बिना कुछ देश को दिए लाभ उठाते हैं।अपने यहाँ घर मे भी एक कमाता है पाँच बैठकर खाते हैं लेकिन हम प्रश्न नही करते।क्योंकि खाने वाले वे लोग हैं जो अभी काम करने लायक नहीं होते ।और जब वे कार्य करने लायक हो जाते हैं तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अब कोई काम धाम करेंगे और परिवार में सहयोग करेंगे।मेरा जो मन्तव्य उसे स्पष्ट किया हूँ कि यथायोग्य कार्य मिले तो देश बहुत ज्यादा प्रगति करेगा।जो योग्य नही हैं उन्हें सुविधा और प्रशिक्षण देने चाहिए जिससे वह स्वावलंबी बन सके।यही मानवीय न्याय है।

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