वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।
कर्तव्यों को भूलकर,याद किये अधिकार। वर्चस्वों की आग में,झुलस रहे परिवार।।
टूट रहे निशदिन यहाँ,विश्वासों के सेतु। रिश्तों में जबसे घुसे,छल के राहू-केतु।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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