वन्दे मातरम्!मित्रो! कहा जाता है कि वह सरोवर भी सरोवर क्या जिसमें कमल दल न हों,वह कमल दल कमल क्या जिसमें सुगंध न हो,वह सुगंध भी सुगंध क्या जिस पर भ्रमर गुंजार न करते हों और वह गुंजार भी गुंजार क्या जो कर्ण प्रिय न हो,वह कर्ण प्रियता भी कर्णप्रियता क्या जो हृदय को सरस न कर दे और वह सरसता भी सरसता क्या जो नित नूतन सृजन के लिए प्रेरित न करे।
भाई अपनी बुद्धिजीविता की केचुली थोड़ी देर के लिए उतार कर तो देखो शिशुता का निश्छल स्मित माधुर्य और अनाविल हृदय की निर्झरणी तुम्हें स्वस्थ कर देगी।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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