वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
सोंच-समझकर,भले ठहरकर कहिए जी! जब भी कहिए,सच जी भरकर कहिए जी! दर्पण के जैसे,टुकड़ों में बँटकर भी, हर टुकड़े में,उभर उभरकर कहिए जी!
डॉ मनोज कुमार सिंह
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