Monday, January 23, 2017

आलेख

वन्दे मातरम्!मित्रो! मेरे अपने कुछ स्वतःस्फूर्त विचार आप सभी को समर्पित हैं। इसपर सहमत या असहमत होना आपका निजी अधिकार है।

कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप अपने फेसबुक के माध्यम से किसी न किसी बहाने अपना राष्ट्रिय/अंतर्राष्ट्रीय जातीय एजेंडा चला रहे हैं और ऊपर से जातिवाद का छद्म विरोध भी कर रहे हैं।इसका प्रमाण ज्यादातर तब देखने में आता है जब किसी किसी की वाल देखता हूँ और वहाँ तत्सम्बन्धित जाति के व्यक्ति मक्खियों की तरह भिनभिनाते हुए दिखाई देते हैं।ऐसे लोग जो बिना मतलब यानी सारहीन पोस्ट भी डालते हैं तो मक्खियाँ झोंक की झोंक उमड़ आती हैं।मैं इसे स्वाभाविक जातीय ग्रंथि मानता हूँ।वैसे आजकल जो जितना बड़ा जातिवादी हैं वह उतना ही बड़ा अपने को सेकुलर कहता है।इसमें तथाकथित कवि/साहित्यकार/लेखक तक शामिल हैं।

उक्ति वैचित्र्य के विद्वान हैं कुछ,
सदा वक्रोक्ति में ही बोलते हैं।
मगर पूर्वाग्रहों की नालियों में,
हमेशा स्वार्थ का विष घोलते हैं।

मित्रो!कहीं आप भी इसके शिकार तो नहीं हैं?अगर ऐसी बिमारी है तो कृपया मुझे अमित्र करें।हम झुंड के भेंड नहीं है जिसे जो चाहे जहाँ हाँक ले जाए।

मेरी चार पंक्तियाँ देश के नाम-

हम पाँव अंगदी,नहीं कभी हिलने वाले।
हम दीप वहीं ,तूफानों में जलने वाले।
हे भारत माँ!हम रीति वहीँ रघुकुल की हैं,
हम गीत वहीं,प्रण-प्राणों में पलने वाले।।

अंत में यहीं कहूँगा कि जातिवादी एजेंडे से ऊपर उठें और अपनी सोंच को मानवता के लिए समर्पित करें।

विराट के अंश हैं हम।
विराट के वंश हैं हम।
चौरासी लाख योनियों में,
श्रेष्ठतम राजहंस हैं हम।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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