Monday, January 23, 2017

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

मजहब वाली राजनीति में,बहता केवल खून यहाँ क्यों?
गांधारी की आँखों वाली,पट्टी सा क़ानून यहाँ क्यों?
रोज तबर्रा पढ़ने वालों,इसका भी उत्तर दे दो,
पाकपरस्ती में ही तेरा,दिखता है जुनून यहाँ क्यों?

डॉ मनोज कुमार सिंह

(तबर्रा' क्या है......?
'तबर्रा' में काफ़िरों की लानत-मलानत कर किसी दूसरे वर्ग की आस्थायों का मज़ाक़ बनाकर अपने धर्म की एकजुटता के लिए तश्करा किया जाता है।)

कुण्डलिया

कुण्डलिया

भाषण सुनकर भैंस की,और देखकर शक्ल।
समझ नहीं आता हमें,भैंस बड़ी या अक्ल।।
भैंस बड़ी या अक्ल,सियासत जो न कराये।
मुल्क भले हो नष्ट,मगर कुर्सी मिल जाए।
जबसे नेता बने,जातिवादी आकर्षण।
लूट रहे हैं देश,जातिगत देकर भाषण।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

सोंच-समझकर,भले ठहरकर कहिए जी!
जब भी कहिए,सच जी भरकर कहिए जी!
दर्पण के जैसे,टुकड़ों में बँटकर भी,
हर टुकड़े में,उभर उभरकर कहिए जी!

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक समसामयिक मुक्तक हाजिर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

बहुत गरीब है पप्पू,फटी जेबें बताती हैं,
मना नव वर्ष ये,आजकल लन्दन से लौटा है।
सियासी योग्यता में,इंदिरा नेहरु का वंशज ये,
दिमागी लूल्ल है फिर भी,ये पार्टी का मुखौटा है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज की राजनीतिक गतिविधियों पर आधारित एक कुण्डलिया हाजिर है।

राजनीति का चेहरा,खुद ही देखें आप।
बेटा पाया सायकिल,पैदल है अब बाप।
पैदल है अब बाप,दिखावा महज सियासी।
साजिश रचकर आज,बने कुर्सी प्रत्याशी।
असली यहीं चरित्र,पिता औ पुत्र प्रीति का।
कितना धोखेबाज,खेल ये राजनीति का।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

विचार प्रवाह

वन्दे मातरम्!मित्रो! कहा जाता है कि वह सरोवर भी सरोवर क्या जिसमें कमल दल न हों,वह कमल दल कमल क्या जिसमें सुगंध न हो,वह सुगंध भी सुगंध क्या जिस पर भ्रमर गुंजार न करते हों और वह गुंजार भी गुंजार क्या जो कर्ण प्रिय न हो,वह कर्ण प्रियता भी कर्णप्रियता क्या जो हृदय को सरस न कर दे और वह सरसता भी सरसता क्या जो नित नूतन सृजन के लिए प्रेरित न करे।
भाई अपनी बुद्धिजीविता की केचुली थोड़ी देर के लिए उतार कर तो देखो शिशुता का निश्छल स्मित माधुर्य और अनाविल हृदय की निर्झरणी तुम्हें स्वस्थ कर देगी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक दोहा पर आपकी सादर प्रतिक्रिया चाहूँगा।

अपनी बिटिया के लिए,सही तेरे ज़ज्बात।
लेकिन औरों के लिए,क्यों मन में प्रतिघात?

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है। जिसमें सियासत के पलटीमार चरित्र को दर्शाने की कोशिश है।आज जनता को उल्लू बनाने का फैमिली ड्रामा चालू आहे।

जिसे हम देश में ढोंगी और सत्ता का दलाल कहते है।
यूपी में उसे मुलायम,दिल्ली में केजरीवाल कहते हैं।
किसी भी हाल में कुर्सी को हथियाने की फितरत को,
सियासत में इसे ही भेड़ियों की चाल कहते हैं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!जीवन में सकारात्मक रहिए,सृजनात्मक बनिए।एक मुक्तक हाजिर है।

सबको पढ़ना,सबकी सुनना।
सोंच समझ फिर,अपनी कहना।
वहीं चमकता ,जिसने सीखा,
सत्संगति में ,निशदिन रहना।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है!

अजनबी शहर में मैं,आज पहली बार आया हूँ।
ज्यों मिट्टी का दीया बन,तमस के घर में समाया हूँ।
मिटेंगी दूरियाँ दिल की,यहीं विश्वास लेकर अब,
मैं गीतों में मधुर रिश्तों का,कुछ उपहार लाया हूँ।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

अच्छे को कभी अच्छा,कहना बुरा नहीं।
सच बोलकर अकेला,रहना बुरा नहीं।
जो झूठ ही जीते है,नकली हँसी के साथ,
कैसे कहूँगा इसको,सहना बुरा नहीं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

रिश्तों को निभाने में,न कम हौसला करो।
बस स्वार्थ में विश्वास को,मत खोखला करो।
जिसमें न हो समर्पण,अपनो के लिए गर,
कितना है सही नजरिया,खुद फैसला करो।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

सीमित चुनावों तक रही,लोकतंत्र की बात।
राजनीति का अर्थ अब,घात और प्रतिघात।।

लोकतंत्र के नाम पर,मिली लूट की छूट।
नेता सत्ता रस पियें,जनता विष का घूंट।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

कर्तव्यों को भूलकर,याद किये अधिकार।
वर्चस्वों की आग में,झुलस रहे परिवार।।

टूट रहे निशदिन यहाँ,विश्वासों के सेतु।
रिश्तों में जबसे घुसे,छल के राहू-केतु।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!कोर्ट के फैसले पर एक कुण्डलिया हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

धर्म,जाति के नाम पर,माँगे जो भी वोट।
या देवे इस नाम पर,उनको मारो चोट।
उनको मारो चोट,जेल कानूनन जाएँ।
जिनमें सेवा भाव,वहीं चुनकर के आएँ।
भाषा या समुदाय,यहाँ हैं भाँति भाँति के।
करो कभी मत वोट,पक्ष में धर्म,जाति के।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज उ प्र की सियासत की घात-प्रतिघात पर कुछ दोहे हाजिर हैं।

समाजवाद के ढोंग ने,किया स्वयं असहाय।
या लोहिया की लग गई,आज सपा को हाय।।

परिवार की पार्टी के,दो दो अब अध्यक्ष।
जनता भी कन्फ्यूज हैं,किसका लें हम पक्ष।।

जातिवादी पार्टियाँ,तुष्टिकरण की मूल।
कुर्सी खातिर बेचती,अपने नित्य उसूल।।

थूक थूक कर चाटीए,चाट चाटकर थूक।
देख सियासी रूप ये,उठे हृदय में हूक।।

बनी रहे कुर्सी सदा,रहे हाथ सब तंत्र।
देख रही जनता यहाँ,प्रायोजित षड़यंत्र।।

मुगलकाल का दिख रहा,फिर से आज फरेब।
सोलह था तैमूर का,सत्रह औरंगजेब।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!राजनीति के चरित्र का एक चित्र मुक्तक में हाजिर है।

सियासत का कुर्सीनामा करते हैं।
आ पारिवारिक हंगामा करते हैं।
इससे पहले कि जनता फेक न दे कुर्सी से,
चलो कुछ ड्रामा ड्रामा करते हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

नव वर्ष के दोहे

वंदेमातरम् मित्रों !नववर्ष के शुभ आगमन पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ -

शांति,अमन बरसे सदा,ऐसा हो नववर्ष।
मानवता की छाँव में,देश करे उत्कर्ष।।

नवल वर्ष में कामना,पल-पल हो खुशहाल।
शोषित,वंचित को मिले,रोटी,चावल,दाल।।

नवलय ,नवगति छंद -सा ,हो यह नूतन वर्ष |
राग लिए नवगीत का ,बरसे घर-घर हर्ष ||

नवल वर्ष में प्राप्त हो ,खुशियाँ अपरंपार |
जीवन मानो यूँ लगे ,फूलों का त्यौहार ||

अच्छी सब ख़बरें मिलें,नवल वर्ष में मित्र।
सबके अधरों पर रहें,खुशियों के सब चित्र।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गीत

वन्दे मातरम्!मित्रो! आचार्य राजशेखर ने काव्य प्रतिभा के दो रूपों को स्वीकार किया।
‘‘सा च द्विधा कारयित्री भावयित्री च।
अर्थात् कवि के लिए आवश्यक होती है कारयित्री प्रतिभा और भावयित्री प्रतिभा। वस्तुतः यहाँ कवि और कविमर्मज्ञ में वही अन्तर है जो अन्तर ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तत्पर व्यक्ति और ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति में है। वस्तुतः काव्यरूपी ब्रह्म का साक्षात्कार कर चुका व्यक्ति ही काव्य का मर्मज्ञ(आलोचक) हो सकता है और उसका कारण यह भावयित्री प्रतिभा ही है।लेकिन आज आलोचक की निष्पक्ष भूमिका संदिग्ध है। वह सहजता को ठगी का शिकार बनाने में अपनी प्रतिभा का प्रयोग कर रहा है।मेरी एक रचना इसी भाव पर आधारित है।

हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि सहज,तुम आलोचक।।
1
क्यों कविमर्मज्ञ का कर्म आज।
सुनकर आती है हमें लाज।
ज्यों गौरैयों पर टूट पड़े,
हिंसक भक्षक दुर्दांत बाज।
सदियों से घायल कवि कहता,
क्यों शोषित मैं,तुम हो शोषक।।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि सहज,तुम आलोचक।।
2
तेरे हाथों में छाप यंत्र।
तुम ही विक्रय के विज्ञ मंत्र।
तुम साधन साधक स्वयं देव!
अद्भुत खूबियों से भरे तंत्र।
खुद लोकार्पण का ले प्रभार,
बाजार बनाते हो रोचक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि सहज,तुम आलोचक।।
3
तुम लाभांशों का योग देख।
किसको छापूँ उद्योग देख।
रचना कैसी हो फर्क नहीं,
छपतीं आमद,उपभोग देख।
अंधी स्पर्धा के युग के
तुम सफल आज इक संयोजक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि सहज,तुम आलोचक।।
4
जब उठती लहरें स्वाभाविक।
हिलती नावें हिलता नाविक।
कवि भी तन्मय होकर झूमता,
पाकर कविता का मधु मानिक।
जब अनासक्त कवि होता है,
कविता होती उसकी प्रेरक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि सहज,तुम आलोचक।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

जिनका दिल काला स्वयं,मन पर धब्बे साठ।
पढ़ा रहे हैं आज वो,सद्चरित्र के पाठ।।

स्वार्थ वृति का आदमी,कितना हो विद्वान।
करता मानव मात्र का,नित्य महज नुकसान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!आजकल हर सरकारी विभाग में अधिकारियों का टोटा पड़ा हुआ है। जो हैं भी,उनमें अधिकतर अनुभवहीन,अकुशल,भ्रष्ट और बेईमान हैं।उन्हीं के सन्दर्भ में ये कुण्डलिया हाजिर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।

बैसाखी का बल लिए,कुछ गदहों की लीद।
कुर्सी पा हाकिम बने,मिट्टी करें पलीद।।
मिट्टी करें पलीद,योग्यता अश्रु बहाए।
लिखना पढ़ना व्यर्थ,आज अब काम न आए।
सुन मनोज अब मार,बैठकर घर में मांखी।
तेरी किस्मत नहीं,लिखी सुविधा बैसाखी।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आलेख

वन्दे मातरम्!मित्रो! मेरे अपने कुछ स्वतःस्फूर्त विचार आप सभी को समर्पित हैं। इसपर सहमत या असहमत होना आपका निजी अधिकार है।

कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप अपने फेसबुक के माध्यम से किसी न किसी बहाने अपना राष्ट्रिय/अंतर्राष्ट्रीय जातीय एजेंडा चला रहे हैं और ऊपर से जातिवाद का छद्म विरोध भी कर रहे हैं।इसका प्रमाण ज्यादातर तब देखने में आता है जब किसी किसी की वाल देखता हूँ और वहाँ तत्सम्बन्धित जाति के व्यक्ति मक्खियों की तरह भिनभिनाते हुए दिखाई देते हैं।ऐसे लोग जो बिना मतलब यानी सारहीन पोस्ट भी डालते हैं तो मक्खियाँ झोंक की झोंक उमड़ आती हैं।मैं इसे स्वाभाविक जातीय ग्रंथि मानता हूँ।वैसे आजकल जो जितना बड़ा जातिवादी हैं वह उतना ही बड़ा अपने को सेकुलर कहता है।इसमें तथाकथित कवि/साहित्यकार/लेखक तक शामिल हैं।

उक्ति वैचित्र्य के विद्वान हैं कुछ,
सदा वक्रोक्ति में ही बोलते हैं।
मगर पूर्वाग्रहों की नालियों में,
हमेशा स्वार्थ का विष घोलते हैं।

मित्रो!कहीं आप भी इसके शिकार तो नहीं हैं?अगर ऐसी बिमारी है तो कृपया मुझे अमित्र करें।हम झुंड के भेंड नहीं है जिसे जो चाहे जहाँ हाँक ले जाए।

मेरी चार पंक्तियाँ देश के नाम-

हम पाँव अंगदी,नहीं कभी हिलने वाले।
हम दीप वहीं ,तूफानों में जलने वाले।
हे भारत माँ!हम रीति वहीँ रघुकुल की हैं,
हम गीत वहीं,प्रण-प्राणों में पलने वाले।।

अंत में यहीं कहूँगा कि जातिवादी एजेंडे से ऊपर उठें और अपनी सोंच को मानवता के लिए समर्पित करें।

विराट के अंश हैं हम।
विराट के वंश हैं हम।
चौरासी लाख योनियों में,
श्रेष्ठतम राजहंस हैं हम।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

शेर

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक शेर(जलेबी के सन्दर्भ में) हाजिर है।

यही किरदार है इंसान का,खाकर मजे से वो,
जब भी दिया नजीर तो टेढ़ा बता दिया।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

माँ पर गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल माँ को समर्पित है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

धैर्य कभी न,खोती है।
माँ तो माँ बस,होती है।

जगती,बच्चे से पहले,
फिर सोने पर,सोती है।

तन मन जीवन,तुष्ट करे,
माँ ममता की,रोटी है।

कल्मष की,मैली चादर,
नित्य प्रेम से,धोती है।

कांटों में ,रहकर भी माँ,
स्वप्न गुलाबी,बोती है।

जिसने पाया,धन्य हुआ,
माँ जीवन का मोती है।

प्रेम,आचरण से पढ़ती,
माँ करुणा की तोती है।

दुनिया में अद्भुत अनुपम,
माँ तो माँ बस होती है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम!हमरा गाँव के माटी के गमक जवन रस देला ओकर शब्दन में वर्णन ना हो सकेला।गाँवन में हर अवसर आ मौसम के गीत भरल पड़ल बा।

संस्कार गीतन में,सोहर से मुंडन तक।
गौना,बियाह,जनेऊ,कनछेदन तक।
फाग,चैती कजरी,किसानी के गीत सुनीं,
गाँवन में फईलल,बधार अरु खेतन तक।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम रउवा सभन के!भोजपुरी में जाति आधारित गीत भी बा जे ओकर सांस्कृतिक पहचान करावेला।

बिरहा अहीर,मलहिया मलाह गावै,
नौवा झक्कड़ नऊवा,तेली बंजरवा।
गावै कँहरवा कहार,गोंड़गीत गोंड,
देवी के गीत,आ चनैनी चमरवा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कवित्त (भोजपुरी)

आप सभन के हमार राम राम!एगो कवित्त भोजपुरी खातिर आ भोजपुरियन से हमार गोहार भोजपुरी में।

पूरबी महेन्दर के,विदेसिया भिखारी के,
हर जगह गाँवन में,आल्हा के तान बा।
सोरठा बृजभार,बारहमासा,जंतसार,
पचरा आ झूमर में,गाँवन के जान बा।
डीजे के ढिमचिक में,जाने गुमाईल कहाँ,
गीत उ जे गाँवन के,असली पहचान बा।
कहेले मनोज,भोजपुरिया समाज सुनs,
रखि ल बचा के थाती,इहे तोहार शान बा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

हड़प के बैठे हैं खुद,धन जो हिन्दुस्तान का।
आज वे माँगते,प्रमाण अब ईमान का।
जंग जारी है अब,विश्वास भी पुख्ता हुआ है,
बनेगा जेल ही घर,हर किसी बेईमान का।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

तीन दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!कुछ दोहे हाजिर हैं। इसका संबंध किसी पार्टी  के चापलूसी करने वाले नेताओं से नहीं है,प्रवृति से है।

चरणदास संस्कृति के,देखे सत्तर साल।
नेता टूजी तक गए,जनता बस बेहाल।।

आजादी से आज तक,देखा हिन्दुस्तान।
पप्पू के परिवार हित,चरणदास बलिदान।।

मैडम जी की जूतियाँ,चरणदास ले शीश।
ढो ढो कर पाते रहे,जीवन भर बख्शीश।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

नजरें कुर्सी पर टिकीं,मुख पर हाहाकार।
नकली आँसू आँख में,लिए घुमैं मक्कार।।

चरणदास संस्कृति के,देखे सत्तर साल।
नेता टूजी तक गए,जनता बस बेहाल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया हाजिर है। आपका क्या कहना है?

साफ़ सफाई के समय,आते हैं व्यवधान।
अस्त व्यस्त होते सदा,घर के सब सामान।
घर के सब सामान,सजाये जाते फिर से।
सब कुछ फिर आसान,बोझ उतरता सिर से।
कुछ तो रख लो धैर्य,दिवस कुछ मेरे भाई!
कई सदी के बाद,हो रही साफ़ सफाई।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Monday, January 16, 2017

डॉ मनोज कुमार सिंह :एक संक्षिप्त परिचय

परिचय-

 नाम - डॉ मनोज कुमार सिंह

    जन्मतिथि -20,02. 67  ,आदमपुर [सिवान], बिहार |

    शिक्षा - एम० ए०[ हिंदी ],बी० एड०,पी-एच ० डी० |

    प्रकाशन - विभिन्न  राष्ट्रीय -अन्तर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित |
              'नवें दशक की समकालीन हिंदी कविता :युगबोध और शिल्प ' और
              'छायावादी कवियों की प्रगतिशील चेतना ' विषय पर
               शोधग्रंथ प्रकाशनाधीन |  विद्यालय पत्रिका 'प्रज्ञा ' का संपादन |

    सम्मान/पुरस्कार 1- नवोदय विद्यालय समिति
                        [मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार  की
                    स्वायत इकाई ] द्वारा लगातार चार बार गुरुश्रेष्ठ
                   सम्मान /पुरस्कार से सम्मानित

                   2-शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान 2012 

                   3 - स्व. प्रयाग देवी प्रेम सिंह स्मृति साहित्य सम्मान 2014 
4-सुदीर्घ हिंदी सेवा और सांस्कृतिक अवदान हेतु प्रशस्ति-पत्र 2015

    सम्प्रति- स्नातकोत्तर शिक्षक ,[हिंदी] के पद पर कार्यरत |

    संपर्क - जवाहर नवोदय विद्यालय,जंगल अगही,पीपीगंज,गोरखपुर
पिन कोड-273165

              मोबाइल -  09456256597

ईमेल पता-
drmks1967@gmail.com