Sunday, April 3, 2016

कुण्डलिया

एक कुण्डलिया।सन्दर्भ-(महिषासुर)

सूअर की औलाद संग,भैंसों की औलाद।
तुले हुए हैं मुल्क को,करने को बर्बाद।
करने को बर्बाद,ऐसी राह हैं पकड़े,
हो जाए यूँ भले देश के सौ सौ टुकड़े,
कहे मनोज कविराय यहीं देखा जीवनभर।
भैंस रही बस भैंस और सूअर बस सूअर।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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