वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल,जो युगीन संदर्भो से प्रेरित है,समर्पित करता हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है। टिप्पणी अवश्य दें।
हम न हिन्दू कभी,न मुसलमान के हैं।
हम हैं इंसान महज,पक्षधर इंसान के हैं।
जब से बोला है हमने,खुरदुरा सच,
जहर की बस्ती में,मौसम तूफ़ान के हैं।
न्याय के देश में,अन्याय चल नहीं सकता,
सब बराबर हैं ,कथन संविधान के हैं।
कुर्सी सत्ता की, महज चाहत में,
देश को तोड़ना,हिस्सा तेरे ईमान के हैं।
सुनो ना'पाक',बंगलादेशियो के कारकूनों,
मिटा देंगे तेरी साजिश,हम हिन्दुस्तान के हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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