वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल आपको समर्पित करता हूँ।स्नेह दीजिये।
गूंगे,बहरे से,खोखले चेहरे।
छिपे परतों में,दोगले चेहरे।
मंसूबे नेक नहीं हैं जिनके,
दिखने में मगर ,भले चेहरे।
सियासत खा गई इंसानियत को,
भूख की आग पर, तले चेहरे।
घृणा के रूप की,किस्सा सुनाते,
मुहब्बत के डरे, जले चेहरे।
मुफलिसी,दर्द,मातम जिंदगी में,
कभी समझेंगे क्या,खिले चेहरे?
डॉ मनोज कुमार सिंह
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