Sunday, April 3, 2016

गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल हाजिर है। आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है।

अपने कभी अपनों से,यूँ जला नहीं करते।
रिश्ते निभाने वाले ,मुकाबला नहीं करते।

सच ये भी है इस दौर का,दुश्मन तो छोड़िये,
मित्रों का अब तो मित्र भी ,भला नहीं करते।

दो खाद पानी कुछ भी,कितना बबूल को,
शाखों पे कभी आम्रफल,फला नहीं करते।

जिनको भरोसा खुद पे,नहीं जिंदगी में वे
पाँवों पर कभी अपने,चला नहीं करते।

राहों में भटक जाते ,वे ही पथिक सदा,
जो लक्ष्य की दिशा का,फैसला नहीं करते।

संयम की चाँदनी में,नहाते हैं जो भी लोग,
स्वभावत: अभाव की,गिला नहीं करते।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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