वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज देश के विखंडित मानसिकता वाले बुद्धिजीवी, नीति निर्धारक और तथाकथित मीडिया वालों द्वारा जिस प्रकार राष्ट्रीय समाचारों ,विमर्शों में किसी भी प्रसंग में
दलित,मुस्लिम,मराठी,बिहारी,आरएसएस जैसे विशेषणों का दुरुपयोग किया जा रहा है उससे निश्चित रूप से राष्ट्रीय,भारतीय,मानवीय और सामाजिक जैसे विशेषणों का खात्मा सा हो गया है। आज असहिष्णु भाषा में मेरी उल्टी बानी प्रस्तुत है।
दलित की या कि मुसलमान की मौत।
जैसे सियासत के, भगवान की मौत।
कितना अनैतिक हो गया,भारत,
घोर निंदनीय याकूब,साहिबान की मौत।
मारो तो मर जायेंगे,बेमौत अभी,
सारे देशभक्त ,बेईमान की मौत।
खतरे में हैं ,बकरियों की मिमियाहट,
जरुरी है शेर की, पहचान की मौत।
अब तो आतंक ही,बचाएगा मजहब,
खूनी खंजर से कर, इंसान की मौत।
रहे पिंजरा घृणा,कुंठा का कायम,
हरेक सोच में हो ,उड़ान की मौत।
सियासत लिख रही,जैसी इबारत,
बहुत नजदीक है,हिन्दुस्तान की मौत।
डॉ मनोज कुमार सिंह