क्या नहीं है कविता!!
कविता-
किसी खाँचे में बँधी मात्र शब्दों की व्याख्या नहीं है
कविता -
अपने अगल-बगल बिखरी चीजों से
चैतन्य संवाद है
अनुभूति से अनुभव की ओर प्रस्थान करती
स्वानुभूति के साथ परानुभूति भी है।
कविता-
भाषा में शब्दों की तूलिका से बनी
जीवन जीने और समझने की
एक गुम्फित तस्वीर है,
आत्मीय अहसास है
चोट की
चीख की
दर्द की
टीस की
भूख की
प्यास की
आनंद की
खुमार की
मस्ती की।
तरंगित संवेदनाओं का
जीवंत अनुवाद है।
यानी कविता क्या नहीं है!
कविता-
एक खास तरह की दृष्टि भी है
जो जीवन के
क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर भाषा में ढलकर
जीवन के पर्यावरण को
रेखांकित और रूपांकित करती है।
कविता -
जीवन के इर्द-गिर्द फैले
अपरमित ब्रह्मांड को
या
उसके अनहदध्वनि को
देखने-सुनने की क्षमता है
सर्जना है!
कविता -
निहत्थे का हथियार है
फटे मन को जोड़ने वाली
सुई-धागा है।
कविता -
भाषा में संवेदनाओं की
जरखेज मिट्टी की
स्वादिष्ट और कड़वी उपज है।
कविता-
यथार्थ की
नये तेवर और कलेवर के साथ
नवीन कल्पनाओं के शिल्प में
ढली आत्माभिव्यक्ति है!
कविता-
करूणा की नींव से स्रावित
वेदना की पिघलती मोम है!
कविता-
सुख का सागर है तो
दुख का पहाड़ भी है!
क्या नहीं है कविता!!
डॉ मनोज कुमार सिंह
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