'आधुनिक भारतीय भासा' सुनि के रउवा एह भरम में मत पड़ीं की ई सब आज के देन ह।ई सब भासा बहुते प्राचीन हईसन।भारत के बहुत भासा अइसन बाड़ीसन,जवन सीधे संस्कृत या वैदिक भासा से जुड़ल बाड़ीसन।
ओकनी के आधुनिक होखे के एगो इहो कारन बा कि उ आधुनिक विचार के ढोवे में कबहूँ पीछे ना रहलीसन।एकनी के साहित्य कसौटी पर हरमेसा खरा उतरल बा, एही से ई सब आधुनिक भारत के ससंरी बाड़ीसन।
कवनो भासा के पहिलका काम होला दू बेकती चाहे दू समूहन के बीच संपर्क स्थापित करे के माध्यम बनल।
ई लोगन के समूहन के बीच में पुल के काम करेलीसन।एकरा के चाहें प्रकृति के देन मानी या ईश्वर के ,भासा से बड़हन देन अउर कुछऊ नईखे। कवनो भी क्षेत्र में आदमी के सगरी उपलब्धि भासा के ही देन ह।
जहाँ तकले भोजपुरी के सवाल बा,ओकर सबसे अनोखा विशेषता बा ओकर मिठास आ कोमलता।हं, एकर पोर पोर स्वाभिमान से भरल बा।भोजपुरी लोक जीवन के साथे अब ज्ञान आ विज्ञान के भी भासा बन चुकल बिया।कुछ बिद्वान लोग भोजपुरी भाषा के पैदाइश मागधी अपभ्रंस से मानेंलें।हवलदार त्रिपाठी के कहनाम बा कि भोजपुरी संस्कृत से निकलल बिया।उहवें भोलानाथ तिवारी एकर उत्पत्ति संस्कृत-प्राकृत से मागधी अपभ्रंस, आ मागधी अपभ्रंस से बिहारी भासा सभ (जे में भोजपुरी भी सामिल कइल जाले) बतवले बाड़ें।
एगो सत्य बात इहो बा कि जवन भासा दरबार के भासा रहलीसन ,ओकनी के विकास बहुत जल्दी भईल।चुकि भोजपुरी कबहूँ दरबार में स्थान ना पवलसि, एही से एकर विकास ओतना तेजी से ना भईल।एही से सासन,प्रसासन भी एकर धेयान ना राखेला।फिर भी जेकरा हक खातिर रोज कहीं ना कहीं संघर्ष चलिए रहल बा।आसा बा कि एकर हक जरूर मिली।एकरा खातिर जवन गुटबाजी चल रहल बा ,ओकरा के खतम करि के कदम से कदम मिला के चले के पड़ी।तब जाके सफलता मिल पाई। अंत में संस्कृत में एगो श्लोक के माध्यम से बात खतम करेम-
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् l
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ll
यानी हमनी के सगरी लोग एके साथे चलीं जा,एके साथे बोलीं जा,सबकर मन एक होखे।प्राचीन समय में देवता लोग के अइसन आचरण रहल,एही से उ लोग हरमेसा बंदनीय बा लो।जय भोजपुरी!
डॉ मनोज कुमार सिंह
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