Wednesday, April 8, 2020

"लोकगीत लोककंठ के अद्भुत परंपरा"

"लोकगीत लोककंठ के अद्भुत परंपरा"

लोकगीत काव्य के आदिम रूप ह।आदिम अवस्था मे आदिमी कवना ढंग से काव्य के रचना कईले रहे,एकर परमान आज हमनी के लगे नईखे,काहे कि एकर कवनो लिपिबद्ध रूप उपलब्ध नईखे।बाकिर ई बात कहल जा सकेला आदिम मानुष गीतन के माध्यम से अपना इच्छित सत्य के प्राप्त करे के सामूहिक परयास जरूर करत रहे। ओह समय के आदमी गीत गा के एह बात खातिर नाचे लो कि ओह गीतन से ओ लो के मानसिक शक्ति मिले।गीतन में विकास के साथे साथे सामूहिकता के परबीरती कम हो गईल, लेकिन खतम ना भईल।आजु भी एकरा के देखल जा सकेला। लोकगीतन के वैदिक सूत्रन के लेखा अपौरुषेय कहल गईल बा।लोकगीतन के परिप्रेक्ष्य में अपौरुषेय के अर्थ ई बा कि एकनी के रचयितन के नाम अज्ञात होला,अउरी ओह गीतन पर रचयितन के व्यक्तित्व के छाप ना होला।ओह समय में व्यक्तिवाद के भावना ना रहला के कारण कवनो भी कवि अपना रचना के गा के समूह के सौंउप देत रहे,अगर उ गीत लुभावन आ आकर्षक रहे त उ गीत प्रचलित होके अगिला पीढ़ी तक पहुँच जाव।गीतन के रचनाकार केहू ना केहू बेकती रहबे कईल।डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जी अपना किताब -'भोजपुरी साहित्य का अध्ययन' के पृष्ठ 467 पर लिखने बानी कि "हमारी धारणा सर्वदेशीय लोकगीतों अथवा गाथाओं की उत्पत्ति के संबंध में यह है कि प्रत्येक गीत या गाथा जन समुदाय का भी प्रयास हो सकते हैं।लोकगाथाओं की परंपरा सदा से मौखिक रही हैं।अतः यह बहुत संभव है कि रचयिताओं का नाम लुप्त हो गया हो।"

एगो बात अउरी कि हर जुग में लोकगीतन के रूप विकसित आ बदलत रहेला।लिखित परम्परा में ना रहला के कारण लोकगीत लोककंठ में ही जीवित रहेला।कुछ लोकगीत मौखिक परम्परा के कारण बीच बीच में लुप्त भी हो जालें अउरी नाया लोकगीत प्रचलित हो जालें।लिखित रूप ना रहला से लोकगीत में स्थान भेद के अनुसार पाठ भेद भी बहुत अधिक हो जाला।एकही गीत भिन्न भिन्न स्थानन में ना केवल भासा बल्कि कथ्य के दृष्टि से भी कुछ ना कुछ अलग हो जाला।संक्षेप में कहब कि लोकगीतन के प्रभाव बड़ा सहज होला,जवना से ई एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी में स्थानांतरित होत रहेले।
लोकगीतन के भी शैली आ विषय के आधार बाँटल गईल बा।शैली के आधार पर लोकगीतन के प्रमुख भेद में नृत्यगीत, पद गीत,आवृत्ति गीत,मुक्तक गीत आ प्रश्नोत्तर गीत राखल गईल बा।ओही तरे विषय आ प्रसंग के आधार पर एकर विभाजन कईल जा सकेला।
स्तुति गीत,परब आ ब्रत के गीत,धार्मिक आ पौराणिक गीत,संस्कार गीत,ऋतु गीत,श्रम गीत,प्रेम गीत,सामाजिक गीत ,राष्ट्रीय गीत,आध्यात्मिक गीत,व्यंग्य गीत आ मनोरंजन गीत।

आई सबे एह लोकगीत के भेदन पर संक्षेप में जानल जाव।पहिले शैली के दृष्टि से गीतन पर बात कईल जाव।

1-नृत्यगीत-
नाच नाच के जवना लोकगीतन के गावल जाला,ओकरा के नृत्यगीत कहल जाला।ईहो दू तरह के होला।पहिला पुरुषन के नृत्यगीत दूसरा स्त्रीयन के नृत्यगीत।एहमें (पुरुषन में)अहीरन के जाँघिया नृत्य,धोबी नृत्य,कहरवा नृत्य,चमरउवा नृत्य आदि आवेला।भोजपुरी क्षेत्र में बरसा ऋतु में होखे वाला स्त्रीयन के कजरी गीतन पर नाच देखल जा सकेला।

2-पद गीत-
पद गीत टेक से युक्त आ पद बद्ध होला।
पद के बाद टेक के पंक्ति दोहरावल जाला।जइसे-

बदनामी सहरिया में ना रहना।।टेक।।
पूड़ी मिठाई के गम मत करना,सुखल सतुइया गुजर करना।
बदनामी.......

2-आवृत्ति गीत-एह शैली के गीत में कुछ पंक्ति अथवा पंक्तियन के अंश बार बार दुहरावल जाले।भोजपुरी गीत के एगो बानगी देखीं-

चलS देखि आईं भोला के लाल गली।
चलS देखि आईं भोला के लाल गली।।
केहू चढ़ावेला अच्छत चन्दन
केहू चढ़ावेला सुंदर चुनरी।।चलS देखि0।।
राजा चढ़ावेला अच्छत चन्दन
रानी चढ़ावेली सुंदर चुनरी।।चलS देखि0।।

3-मुक्तक गीत-
जवना गीत के पद स्वतंत्र मुक्तकन के रूप में होलें,ओकरा के मुक्तक गीत कहल जा सकेला।ई पद दू दू,चार चार लाईन के होखेलें।मुक्तक गीत के ई परंपरा प्राचीन काल से चलत आ रहल बा।लोक गीतिका- के सं0 श्रीमती प्रभावती सिंह ,प्रथम संस्करण,पृष्ठ -66 पर एगो उदाहरन देखीं-

मोटी मोटी लिटिया लगइहे रे धोबिनियाँ,
कि बिहने चले के बाटे घाट।
तिनहि चीजि मत भुलिहे धोबिनियाँ,
कि टिकिया ,तमाखू,थोड़ा आगि।
निबिया के पेड़वा जबै नीक लागे,
जब निबकौरी न होय,
गौहुआँ के रोटिया जब नीक लागे,
घी से चभोरी होय।।

4-प्रश्नोत्तर गीत-
एह गीतन में प्रश्न आ उत्तर के शैली अपनावल जाला।ई दू दू लाइन के पद में बान्हल होला।जवना के एगो पंक्ति में कवि प्रश्न पूछेला आ दोसरका लाईन में आकर उत्तर भी दे देला।प्रश्नोत्तर शैली में डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जी के आपन रचना पुस्तक 'भोजपुरी लोकगीत' के पृष्ठ संख्या 222 पर एगो उदाहरण देले बाड़ें।रउवो देखीं-

कवन गरहनवां बाबा साँझहि लागे हो कवन गरहनवां भिनुसार ए।
कवन गरहनवां बाबा मड़वनि लागेला कब दोनी उगरह होई ए।
चान गरहनवां बेटी साँझहि लागेला,सुरुज गरहनवां भिनुसार ए।
धियवा गरहनवां बेटी मड़वनि लागेला कब दोनि उग रह होइ ए।
हमरा ही अम्मा के सोने के थरियवा छुवत झनाझन होइ ए।
उहे थरियवा बाबा दमादे के दिहितS तब रउरा उगरह होई ए।
हमरा ही भइया के सुन्नर गइया हो सोनवे मढ़ावल खूर ए।
सुन्नर गइया दमादे के दिहितS हो थ राउर उगरह होई ए।

एही तरे विषय आ प्रसंग के आधार पर लोकगीतन के विभाजन कईल गईल बा।

1-स्तुति गीत-
एह में देवी देवता लोगन के उपासना,पूजा आ गुणगान से सम्बंधित लोकगीत गावल जाला।अपना आराध्य के महिमा आ शक्ति के बखान करत ओह देवता देवी से याचना प्रथना करे के दृष्टि से एकरा के गावल जाला।भोजपुरी में शिवजी,पार्वती जी,देवी या शीतला, गंगा आदि के स्तुति से सम्बंधित गीत विशेष प्रचलित बा।

गाई के गोबरे महादेव, अंगना लिपाई
गजमति आ हो महादेव चउका पुराई
सुनि ए सिव, सिव के दोहाई।
चउका बइठल महादेव गईनी अलसाई।
हुतुकनि मारि गौरा देई, लिहली जगाई
सुनी ए सिव सिव के दोहाई।
हुतुका के मरले महादेव गईनी कोहनाई
बहियां लफाई गौरा देई लिहली मनाई
सुनी ए सिव सिव के दोहाई।

2-परब आ ब्रत गीत-
पर्वन में रामनवमी,सतुआन,नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, अनवत, विजयादशमी, धनतेरस, दिवाली,खिचड़ी,महाशिवरात्रि, होली आदि स्त्री आ पुरुषन खातिर समान रूप से मान्य होला।बाकिर ब्रत अउर परब में केवल स्त्रीयन खातिर बहुरा, गणेश चतुर्थी, तीज,जिउतिया, गोधन,पिंड़िया,छठ होला।पिंड़िया के एगो गीत डॉ श्रीधर मिश्र के किताब -('भोजपुरी लोक साहित्य:सांस्कृतिक अध्ययन' के पृष्ठ संख्या 215-252 ,इलाहाबाद 1971)से लीहल उदाहरण रूप में प्रस्तुत बा बस दू गो पंक्ति-

बारह मास हम बालू में रहनी,पीड़िया के गोड़वारी,
ए पीड़िया माई सेई ले तोहके।

3-धार्मिक आ पौराणिक गीत-
एह गीतन में शिव विवाह, राम विवाह,राम जन्म,कृष्ण जन्म,कृष्ण की बाल लीलाएं,लंका दहन,प्रह्लाद की कथा,श्रवण कुमार की कथा से सम्बंधित प्रसंग होला।

4-संस्कार गीत-
भोजपुरी भासा क्षेत्र में तरह तरह के लोकाचार के संस्कार गीत बाड़ेसन,जवना में सोहर,मुंडन गीत,जनेऊ गीत,विवाह गीत आदि प्रमुख बाड़ें।।जइसे सोहर विशेष मांगलिक गीत ह जवन पुत्र जन्म के समय गावल जाला।ओही तरे मुंडन के समय मुंडन संस्कार गीत भी गावल जाला।जनेऊ गीत भी विवाह के अवसर पर गावल जाला।विवाह सम्बन्धी गीतन में बढ़िया वर के इच्छा,तिलक,बियाह,बिदाई,दान दहेज,गवना आदि से सम्बंधित प्रसंग गावल जाला।ई गीत मंगल गीत होखला के साथे बियाह प्रसंग में नहछू नहावन,गारी, परिछावन,मटकोड़,पितर नेवता,हरदी, माड़ो छवाई,मानर पूजा,हरिस पूजा,कोहबर,तिलकोत्सव, दुवार पूजा, गुरहथाई, सिंदूर दान के अलग अलग गीत होखेला।

5-ऋतु गीत-
ऋतु गीत चार तरह के होले,जवना में फगुआ,चैता, कजरी आ झूला गीत।साथही बारहमासा भी गावल जाला जवना में बारहो मास के विशेषता बतावल जाला।बारहमासा में विधा के दृष्टि से कजरी,फाग या कवनो धुन पकड़ लीहल जाला।एह गीतन के बहुत ज्यादा संख्या बा।श्रीमती प्रभावती सिंह के रचना पुस्तक 'लोकगीतिका' के पृष्ठ संख्या 49 पर एकर एगो बानगी देखीं-
बेला फूले आधी रात, चमेली भिनुसहरा रे हरी।
सोने के थाली में जेवना परोसलू
अरे रामा सइयाँ जेवे आधी रात,देवर भिनुसहरा रे हरी।
झंझरे गडुववा गंगाजल पानी,
अरे रामा सइयाँ पिये आधी रात,देवर भिनुसहरा रे हरी।
लवंगि-लाची के बीड़ा लगवलिउं,
अरे रामा सइयाँ कूँचे आधी रात,देवर भिनुसहरा रे हरी।

6-श्रम गीत-
लोकगीतन में काम करत के समय भी गीत गावे के परंपरा रहल बा।एकरा पीछे इहे उद्देश्य रहल बा कि मनोरंजन कईला के साथे साथे काम भी पूरा हो जाव आ थकान अउरी ऊबाउपन ना लागे।पटहा पर कपड़ा धोवत धोबी के गीत होखे भा जांत चलावत मेहरारू के जँतसार चाहे धान कूटत,गेहूँ बीनत,आटा चालत,पूड़ी बेलत मेहररुअन के गीत,एही श्रेणी में आवेलेसन।खेतन में सोहनी ,रोपनी,धान के पिटाई होखे चाहे गाड़ीवान के गाड़ी हाँकत के समय के गीत होखे ,मलाह के नाव खेवत समय गावल गीत होखे एही श्रेणी में आवेलेसन।ई श्रम के सगरी गीत समूह में गावे के परंपरा रहल बा।कजरी,झूमर चाहे लाचारी होखे ई सब श्रम गीतन के श्रेणी में मानल जालें।जइसे डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जी अपना किताब-'भोजपुरी लोकगीत'के पृष्ठ 290 पर जँतसार के एगो उदाहरण देले बानी।ओकर खाली दू लाईन लिखतानी-

बाबा काहे के लवल बगइचा काहे के फुलवरिया लवल ए राम।
बाबा काहे के कईल मोर बियहवा,काहे के गवनवा ए राम।

7-प्रेम गीत-
भोजपुरी प्रेममूलक लोकगीतन के स्वरूप बिल्कुल सहज,स्वच्छंद आ सीधा होला।ओह में बनावटीपन ना होला।अलिखित आ कंठ परंपरा में गावे जाए वाला ई गीत शिष्ट साहित्य के वर्जनावन से भिन्न होला।ई लोकगीत प्रकृति के गोद में जइसे खेत खरिहान,बगइचा, झोपड़ी,गाँव के गलियन में अंकुरित आ पल्लवित होला।
श्री दुर्गा प्रसाद सिंह के किताब 'भोजपुरी लोकगीतों में करुण रस 'के पृष्ठ 332-336 पर(प्रयाग 1965,के द्वितीय संस्करण)एगो उदाहरण दिहल बा।वियोग सिंगार रस के एह लोकगीत के रउवो पढ़ीं-

कवने अवगुनवाँ पिया हमके बिसरावेला
पिया जी मतिया बउराइलि हो राम।
आधी राति गइले बोलेले पहरुआ,
धड़ धड़ धड़केला जियरा पिया बिनु हे राम।
चढ़ल जवानी पिया माटी में मिलवले
इही हउवे पूरुब कमाई हे राम।
कवने अवगुनवाँ पिया हमरा के जार तारे
पिया जी मतिया बउराइलि हे राम।।

8-सामाजिक गीत-

एह गीतन के अंतर्गत पारिवारिक, जाति, वर्ग,वर्ण के सम्बंध के भाव परोसे वाला मनोभाव होला।बाप -बेटा, भाई बहिन,मरद-मेहरारू,सासु पतोह, ननद भउजाई के आपसी प्रेम आ तनाव एकरा अंतर्गत आवेला। परिवार के भीतरी सम्बन्धन पर प्रकाश डालत संक्षेप में एगो मार्मिक जँतसार गीत के उदाहरण देखी-

केरे देले गोहुंवा केरे देले चंगेलिया।
कवन बइरनिया हो राम भेजेले जंतसरिया।
सासु देली गोहुंवा हो रामा ननदी चंगेलिया।
गोतिनि बइरनिया हो रामा भेजेली जंतसरिया।
जंतवा ना चले ए प्रभुजी,मकरी न डोलइ
जंतवा धइले हे प्रभुजी रोइला जंतसरिया।

9-राष्ट्रीय गीत-
भोजपुरी लोकगीतन में भी राष्ट्रीयता के भावना से ओतप्रोत गीत गावल गईल बा।
एगो उदाहरण देखीं-
आजु पंजाबवा के करि के सुरतिया
से फाटेला करेजवा हमार रे फिरंगिया।
भारत के छाती पर भारत के बच्चन के,
बहल रकतवा के धार रे फिरंगिया।
दुधमुंहा लाल सब बालक मदन सब,
तड़पि तड़पि देले जान रे फिरंगिया।।

10-आध्यात्मिक गीत-

भोजपुरी क्षेत्र में आध्यात्मिक गीतन के निरगुन के रूप में जानल जाला।एकरा से सम्बंधित जे साधु संत बा उ प्रायः निम्न वर्गीय जाति से मिलेला लो,जवना में जोलहा,नाई, चमार,धुनिया प्रमुख बाड़ें।निरगुन के एगो उदाहरण देखीं-
बाला मुनि बाला मुनि कुइयाँ खोनवले हो राम।
आहो रामा डोरिया बरत दिनवाँ बीतल हो राम
दस पाँच सखिया मिली पनिया के चलली हो राम।
आहो रामा कुइयाँ परेला ठाठा काल हो राम।
टूटि गइल डोरिया भठि गइल कुइयाँ हो राम।
....................।

11-व्यंग गीत-

भोजपुरी में व्यंग गीत हँसे हँसावे खातिर दोसरा के बुराई आ कुरूपता यानी कमियन पर सीधे इशारा करिके चोट कइल जाला।एह लोकगीतन के कमी जरूर बा बाकी ई कहल ठीक नईखे कि भोजपुरी में अइसन गीत नईखे।देखी एगो उदाहरण-

फूहरि नारि कइसे घर तारे।
सेर भर पीसे सवा सेर फाँके
पोवै के बेर ओकर मुड़वा पिराय।
कइसे घर तारे।
साँझे के सोवलि पहर दिन जागे
रोइ रोइ बढ़नी डारे।
कइसे घर तारे।
छानी क फूस चूल्ही लाई डारे।
औरो बड़ेरी प घात लगावे।
कइसे घर तारे।

12-मनोरंजन गीत-

भोजपुरी लोकगीतन में फुरसत के समय गावे जाए वाला गीत मनोरंजन गीत के श्रेणी में आवेला।भइंस चरावत,खेत मे मचान पर बइठ के गावत चाहे कहांर के रात में फुरसत पावला के बाद कहरवा गावे के बहुत उदाहरण मिल जाला। मेहरारू लो मेला जात समय मनोरंजन खातिर झूमर,लाचारी गावेला लो।एगो उदाहरण देखीं-

झुमका गिरा रे,बरेली के बाजार में।
सासु जी खोजे,ननदिया भी खोजे
सैंया खोजेला मसाल दिया बार रे।
सासु भी रोवे,ननदिया भी रोवे,
सैंया रोवेला रुमाल मुँह डार रे।
सासु भी मारे ननदिया भी मारे,
सैयां मारेला,करेजवा के पार रे।
झुमका गिरा रे,बरेली के बाजार में।।

भोजपुरी में लोकगीतन के एगो बहुत समृद्ध परंपरा बा।ओकर सुरक्षा कइसे कईल जाव ई चुनौती के काम बा।नवका पीढ़ी अपना लोक परंपरा आ गीतन से धीरे धीरे दूर हो रहल बिया।अब गाँवन में भी फिल्मी तर्ज पर जोड़ल गाँठल गीत गावल जा रहल बा।दोसर बात की भोजपुरी में अश्लील गीतन के बाढ़ आ गईल बा।कजरी,फ़ाग,बारहमासा,कंहरवा,बिरहा,जँतसार,सोहर,
मंगल गीत,परिछन गीत,माड़ो छवाई गीत,विदाई गीत,संझा गीत,पराती,गारी, झूमर,लचारी, निरगुन, भजन,नेवता सम्बन्धी गीत,ईमली घोंटाई गीत,मटकोड़
के गीत,द्वारपूजा के गीत,गुरहत्थी के गीत,सिंदूरदान के गीत,हवन के गीत,कोहबर के गीत,हिंडोला,धोबी गीत, तेली गीत,पचरा,निरवाही गीत जइसन विविध प्रकार के पारंपरिक गीत संस्कृति के सुरक्षा के जिमेवारी लोक साहित्यकार लोगन के बा। भासा के साथे साथे ओकरा लोकगीतन से नया पीढ़ी के जोड़ल बहुत जरूरी बा।काहे कि जइसे जइसे आधुनिक सभ्यता के प्रसार हो रहल बा,तइसे तइसे लोकगीतन के गावे वालन के संख्या घट रहल बा।पढ़ल लिखल लोग लोकगीतन के पिछड़ापन के निशानी मान के कहीं एकरा के भूला मत देव।काहे कि ई लोग लोकगीतन के असभ्य लोगन के साहित्य समझेला।अब त निम्न वर्ग के लोग भी थोड़ा शिक्षित हो जाता त लोकगीतन से दूर हो जाता।अगर इहे स्थिति रहल त भविष्य में लोकगीतन के अस्तित्व ही खत्म हो जाई।जइसे खेत से बैल ओरा गइलें त ओकरा से सम्बंधित औज़ारन के नाम भी धीरे धीरे लुप्त हो गइल बा।बाकिर अंत में ई बात जरूर कहेब कि ई लोकगीत शाश्वत अउरी प्राणवान रहल बा जवन युग युग के बाधा के मेटावत, हटावत एह समय तक कंठ में प्रवाहित हो रहल बा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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