Wednesday, April 8, 2020

समकालीनता का अर्थ और अर्थ व्याप्ति

समकालीनता का अर्थ और अर्थ व्याप्ति
********************************
क- समकालीनता:अर्थ और अर्थवत्ता
*******************************
'समकालीनता' एक व्यापक कालसापेक्ष संकल्पना है। एक कालखंड में जीने वाले अभी रचनाकार समकालीन कहे जा सकते हैं,किन्तु गत्यात्मक संदर्भ में समकालीन शब्द का अर्थ केवल किसी विशिष्ट कालखंड में साथ साथ जीना भर नही है,बल्कि अपनी व्यापकता में यह अवधारणा उन सभी रचनाकारों को और कृतित्व को समेट लेता है,जो आज के युग में रचना के कर्म में रत हैं,अथवा जो कुछ वर्षों पूर्व साहित्य रचना कर चुके हैं या अद्यावधि कर रहे हैं।आज समकालीन शब्द उन रचनाकारों के लिए रूढ़ हो गया है,जो घोषित करते हैं कि जनवादी हैं,उनका कृतित्व व्यवस्था विरोधी है। खगेन्द्र ठाकुर प्रसंगवश कहते हैं कि- "समकालीन मैं उसको समझता हूँ,जो अपने समय के द्वारा उठाये गए प्रश्नों से टकराता है,उनका मुकाबला करता है।जो जो अपने समय के प्रश्नों से कतराकर निकल जाता है,किसी शाश्वतता से लिपटा रहता है या पीछे की ओर देखता रहता है,व्हिस काल में रहकर भी समकालीन नहीं है।इसी अर्थ की रोशनी में कविता या किसी वस्तु की समकालीनता का निर्णय करना उचित है।"(1)

अरविंद त्रिपाठी ने परमानन्द श्रीवास्तव द्वारा संपादित पुस्तक हिंदी कविता की समीक्षा में समकालीनता को समझते हुए लिखा है कि -"समकालीन शब्द में एक सहज अति व्याप्ति है,पर दूसरी ओर इसमें एक निश्चित ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट करने की क्षमता भी है,समकालीन कविता कहते ही हमारे समय के महत्वपूर्ण सरोकारों ,सवालों से टकराती एक विशेष रूप और गुणधर्म वाली कविता का चित्र सामने आ जाता है,समकालीन कविता चाहे प्रेम की हो या राजनीतिक स्थिति या मानवीय संकट की- इतना निश्चित है कि एक खास समय की संवेदना इसके चित्रण के ढंग को ही नहीं,अनुभव के रूप अथवा प्रकृति को भी प्रभावित करती है।(2)

वैसे समकालीन को अगर काल-दर्शन की दृष्टि से देखा और परखा जाये, तो यह एक महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय शब्द है,लेकिन समय प्रवाह के किस अंश को समकालीन कहा जाय,यह भी एक विशेष पहलू और विचारणीय विषय है।हिन्दी में 'समकालीन' शब्द अँग्रेजी के 'कांटेंपेरेरी' शब्द के पर्याय के रूप में प्रचलित है।'कांटेंपेरेरी' का अभिप्राय तीन अर्थों में समाहित है-

1- काल विशेष से सम्बद्ध
2- व्यक्ति विशेष के कालयापन से सम्बद्ध
3- साहित्य -समाज अथवा प्रवृत्ति-विशेष से संश्लिष्ट कालखंड

'समकालीनता' को समझने के लिए "आधुनिक"और "अत्याधुनिक" शब्द अधिक महत्त्वपूर्ण है।आधुनिक अधिक व्यापक और मूल्यगर्भित शब्द है,तो अत्याधुनिक एकदम आज का और लघुतम कालखण्ड का बोधक है।"समकालीन अत्याधुनिक को अपने आप में समाहित किये हुए आधुनिक की पीठ पर स्थित कालखण्ड है।"(3)
इसी तरह जब हम आज की हिन्दी कविता की बात करते हैं,तो निश्चय ही हमारा मन्तव्य "नयी कविता संज्ञा से जानी जाने वाली कविता से अथवा विभिन्न आंदोलनों से जुड़ी रहने की घोषणा करती हुई कविता सम्बन्धी संज्ञाओं से नहीं है, जो कविता की बात कम और अपनी अलग पहचान की बात ज्यादा करते हैं,लेकिन सामान्यतया"समकालीन कविता" शब्द साठोत्तरी(सन् 1960 के पश्चात की) कविता के लिए प्रयुक्त होने लगा है।व्यक्ति के संदर्भ में जीवन प्रवाह को उसका समकालीन माना जा सकता है।साहित्य के मूल्यांकन की दृष्टि से साहित्यकार को ,किसी कवि,आलोचक अथवा लेखक को अपने लेखन के परिप्रेक्ष्य में समकालीनता का निर्धारण करना होगा।काल- विशेष के सामाजिक,राजनैतिक अथवा सांस्कृतिक निकष पर भी समकालीन की परश संभव है। (4)

आज की कविता की बात करते हुए हमें स्वनामधन्य कवियों के साथ साथ नए उभरते हुए युवा कवियों की कविताओं को भी दृष्टि में रखना होगा,क्योंकि ये लोग आज के समस्या बहुल जीवन के विभिन्न पक्षों ,आयामों को अपनी कविता का विषय बनाकर एक ओर अपनी रचना-प्रक्रिया का परिचय दे रहे हैं तो दूसरी ओर आज की हिंदी कविता को बंधन से निकलकर जीवन और समाज के बहुरूपीय संघर्ष की अभिव्यक्ति दे उसे तीव्र गति से जीवन की समतल भूमि की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
यदि इस तथ्य की सम्यक् विवेचना करें,तो समकालीन कविता गुण और मात्रा दोनों ही दृष्टियों से पूर्ववर्ती कविता से भिन्न है।गुण या अंतर्वस्तु की दृष्टि से समकालीन में कालातिक्रमण नहीं,कालांकन है।यदि यह कहा जाय कि कालांकन पूर्ववर्ती कविता में भी है,तो पृथक्करण का आधार मात्र होगी।तब कहा जा सकता है,कि समकालीन कविता में अपने समय का अंकन अधिक मात्रा में है।विधि की दृष्टि से भी पूर्ववर्ती कविता और समकालीन कविता में अंतर है।समकालीन कविता के पूर्व की कविता पर भी समय का प्रभाव है,छाप है,किंतु आज की कविता में अपने समय के साथ जितनी सीधी और उग्र मुलाकात होती है,उतनी पहले की कविता में नहीं होती।भूतपूर्व कविता में "सामान्य" या "शाश्वत" तत्त्वों और स्थानों के प्रति जितना लगाव मिलता है,उतना समकालीन कविता में नहीं मिलता।यथा- स्वच्छंदतावादी(रोमांटिक) तथा "नयी कविता" में कालातीत (ट्रांसेडैस) होने अथवा सार तत्त्वों (एसेंस) को पकड़ने का चाव साम्प्रतिक कविता में बहुत कम है।(5)

समकालीन का प्रायः "व्यतीत"का विपरीतार्थी माना जाता है और इस प्रकार हमारा सम्पूर्ण लेखन दो वर्गों में विभक्त हो जाता है-
1-समकालीन लेखन
2-व्यतीत लेखन
लेकिन ध्यातव्य है कि सृष्टि के नैरन्तर्य में विभाजन सुविधा के लिए मान लिया जाता है।वास्तविकता यह है कि इन दोनों के बीच नैरन्तर्य की सूक्ष्म रेखा प्रवाहमान रहती है।"समकालीन" (चेतन या चेतना) आधुनिक संसार का होता है तथा वह अपने लेखन में इसे प्रतिबिंबित करता है,साथ ही वह इसके भीतर से गुजरती हुई ऐतिहासिक शक्ति को भी स्वीकारता है।इस प्रकार "समकालीन" की परिभाषा में तीन तत्त्वों का समावेश है-
पहला -यह कि समकालीन को आधुनिक होना चाहिए।
दूसरा यह कि उसे अपने समय के गहन और केन्द्रीय स्पन्दन को अपनी कृतियों में प्रतिबिंबित करना चाहिए तथा तीसरे यह कि कृतियों से गुजरती हुई ऐतिहासिक शक्तियों को उसके द्वारा मान्यता मिलती है।(6)

('नवें दशक की समकालीन हिन्दी कविता:युगबोध और शिल्प' शोध-प्रबंध, 1996 (पृष्ठ 1 से 4)-डॉ मनोज कुमार सिंह से उद्धृत )

No comments:

Post a Comment