गीत मनोज के..
1
तुमने किसकी सुनी आजतक,तेरी कौन सुनेगा?
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?
जैसी करनी वैसी भरनी,
किया कभी एहसास नहीं।
परिवर्तन के अटल सत्य में,
है तेरा विश्वास नहीं।
सूखा,बाढ़ का चक्र सदा ही,
धरती पर चलता रहता।
फिर भी मानव सृजन शक्ति से,
जीवन को गढ़ता रहता।
लेकिन जो अपकर्म करे,कुत्ते की मौत मरेगा।
खोदी है खाई जो तुमने, बोलो कौन भरेगा?
सूरज चाँद सितारे तम में,
तुमको राह दिखाये।
फिर भी तेरी आँखों में,
तम ही तम क्यों हैं छाये।
तुम गुलाल की जगह सदा ही,
कीचड़ रोज उछाले।
पूज्य प्रेम की जगह हृदय में,
घृणा नित्य ही पाले।
बोया विष की बेल अगर खुद,बोलो कौन चरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?
स्वार्थपूर्ति की बलिवेदी पर,
किसको नहीं चढ़ाये।
तुमने अपने रिश्तों को भी,
नोच नोच कर खाये।
तेरी खातिर मात्र खेल है,
जीवन की सब बातें,
जज्बातों से खेल खेलकर,
अपना मन बहलाते।
दर्द के बदले दर्द मिला तो,बोलो कौन हरेगा?
खोदी है खाई जो तुमने,बोलो कौन भरेगा?
डॉ मनोज कुमार सिंह
2
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।।
1
सतत् राष्ट्र आराधना में समर्पित।
सदा मातृभूमि की गरिमा से गर्वित।
सहज चेतना के सरलतम सिपाही,
सदा सरहदों को करें जो सुरक्षित।
करो मान सम्मान उनका हमेशा,
खड़े, दुश्मनों से, हमें जो बचाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।
2
पिला सबको अमृत,गरल खुद पिये जो।
सदा शिव बनकर,मनुज हित जिये जो।
खड़े बर्फ में ,घाटियों,जंगलों में,
हमारे लिए अपना जीवन दिये जो।
नमन हम करें उन शहीदों को निशदिन,
दिये जान अपनी किये बिन बहाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।।
3
तिरंगा की गंगा में निशदिन नहाए।
सदा क्रांति का गीत सबको सुनाए।
लिए भावना सद् लड़े आँधियों से,
वतन की जमीं प्राण देकर बचाए।
उसी भक्ति की शक्ति से आज हम भी,
पाए है जीवन के लमहे सुहाने।।
गजब की जवानी,गजब के दीवाने!
चले हैं बिना मूल्य गर्दन चढ़ाने।
डॉ मनोज कुमार सिंह
3
नित्य जड़ विचार पर,प्रबल प्रखर प्रहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
1
विचर विचार व्योम में,
प्रचंड वेग तुल्य तू।
सिद्ध कर अनंत के,
अनादि सर्व मूल्य तू।
अखंड दिव्य ज्योति से,
मन मणि धवल करो।
धरा तमस से मुक्त हो,
नित नवल पहल करो।
पतझरों की शुष्कता में,स्नेह भर बहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
2
घर नगर प्रदेश में ,
या कहीं भी देश में।
मनुष्यता मिटे नहीं,
रहो किसी भी वेश में।
ब्रह्माण्ड सा बनो कि तुममें,
हों अनेक भूमियाँ।
विराट भव्य भाव से,
रचो नवीन सृष्टियाँ।
प्रणय पुनीत नींव में,घृणा की मत दीवार भर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
3
फैलो सुरभि-से इस तरह,
महक उठे दिशा दिशा।
बरस कि शुष्क पुष्प की,
हरी हो उसकी हर शिरा।
मधुर सरस गुंजार से,
खिला चमन की हर कली।
पलक पर स्वप्न पालकर,
चखो तू प्रेम की डली।
सदा हृदय आकाश में,तू मेघ बन विहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
4
थके -थके पाँव
.......................
लौटा हूँ अभी अभी,
मैं अपने गाँव-
थके-थके पाँव ||
रिश्तो की रुसवाई ,
फेंक रही झाग |
आसमान धधक रहा,
उगल रहा आग |
कागज की छतरी है,
कैसे मिले छाँव |
शहराती मोर मिले ,
मोरों के शोर मिले |
सजे -धजे अजनबी से,
चेहरे हर ओर मिले |
याद आई आँगन के,
कौओं की काँव|
शब्द -पुष्प सूख गए ,
भाव- गंध रूठ गए ,
मस्ती की वीणा के ,
काव्य- तार टूट गए ,
किस्मत भी खेल रही
कैसे -कैसे दांव |
डॉ मनोज कुमार सिंह
5
आह्वान गीत
........................
राष्ट्रचेतना की जागृति का,
नारा अनुपम श्रेष्ठतम।
भारतमाता की जय बोलें,
बोलें वन्दे मातरम्।।
शस्य श्यामला मातृभूमि का
निशदिन अभिनव गान करें।
मृदूनि कुसुमादपि भावों से,
नित्य नवल अभिधान करें।
हृदय-कुंज के भाव-सेज पर,
रखकर अक्षत चंदनम।
भारत माता की जय बोलें,
बोलें वन्दे मातरम्।
विभवशालिनी,शरणदायिनी,
मातृभूमि है दयामयी।
अमृत से भरपूर हृदय से,
क्षमामयी,वात्सल्यमयी।
प्राण समर्पित करें सदा हम,
यहीं रहे कर्तव्य परम।
भारतमाता की जय बोलें,
बोलें वन्दे मातरम्।
पावन ध्वज ये सदा तिरंगा,
गगन श्रृंग लहराए।
संस्कृति की गौरव गाथा का,
शौर्यगान दुहराए।
नई ऊँचाई छूने खातिर,
आगे बढ़ते रहें कदम।
भारतमाता की जय बोलें,
बोलें वन्दे मातरम्।
देशद्रोहियों के जीवन में,
मचा सकें हम घोर प्रलय।
देश छोड़कर भागें या फिर,
बोलें भारत माँ की जय।
एक राष्ट्र ,एक ध्वज,एक भाषा,
हो पहचान यहीं अनुपम।
भारतमाता की जय बोलें,
बोलें वन्दे मातरम्।
डॉ मनोज कुमार सिंह
6
आओ मिलकर करें सृजन!
...........................................
डरे नहीं हम , घबरायें ना , संघर्षों से करें मिलन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !
नित अभिनव सद् सोंच गढ़े ,
कण – कण की हर बात पढ़ें !
जीवन की हर राह सुगम हो ,
श्रम की उंगली पकड़ बढ़ें !
जीवन की सूखी बगिया में , चलो खिलाएं नया सुमन !
विध्वंसो की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
रचना के हर नवल भूमि पर
रचनाकार अमर होता है !
कार्य कठिन है प्रसवित करना,
जीवन एक समर होता है !
चलो उगाएँ मरूभूमि में शब्दों का सुरभित उपवन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
स्वाद , दृश्य , स्पर्श , घ्राण हो !
श्रवण साधना काव्य प्राण हो !!
विविध रंग के भाव भरे हम !
मन के सारे कष्ट त्राण हो !!
चलो बनायें ऐसी कविता , मन का हर ले सभी चुभन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
जिसने पत्थर तोड़ – तोड़कर
औ तराशकर मूर्ति बनाई,
जड़ता के अंधियारे में जो
ज्ञान – दीप की ज्योति जलाई !
उसे हृदय की दीप – शिखा से, आओ करते चले नमन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ आओ मिलकर करें सृजन !!
डॉ मनोज कुमार सिंह
7
हम चुपके चुपके रोते हैं!
...........................
सुन प्यार भरे बचपन तुझसे ,
जब दूर कभी हम होते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
1
वो खेल खिलौने आज कहाँ ?
मन की मस्ती के साज कहाँ ?
है लाखों की अब भीड़ यहाँ ,
पर अपनों की आवाज कहाँ ?
जीवन की आपाधापी में ,
रिश्तों को बस हम ढोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
2
माँ के आँचल की छाँव कहाँ ?
अब पंख लगे वो पाँव कहाँ ?
अलगू से जुम्मन की यारी ,
वो अद्भुत् मेरा गाँव कहाँ ?
टूटे वीणा के तारों-सा ,
बचपन तुझको अब खोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
3
वो बाग़-बगीचों की रौनक |
वो रिश्तों की असली थाती |
जीवन की उर्जा कहाँ गई ,
गुल्ली- डंडा ,ओल्हा -पाती ,
वो ख्वाब सभी लगते जैसे ,
हाथों से उड़ते तोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
4
वो होली का हुडदंग कहाँ ?
मन को रंग दे वो रंग कहाँ ?
था प्यार, मुहब्बत घर जैसा ,
ऐसे अपनों का संग कहाँ ?
अब तो घातों-प्रतिघातों से ,
पाए जख्मों को धोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
डॉ मनोज कुमार सिंह
8
व्यंग्य गीत
............................................
सपने मेरे जीवन के,साकार कराना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
भ्रमण हेतु सरकारी गाड़ी ,
बीबी के तन महँगी साड़ी,
कुर्सी का हत्था ना छोडू ,नहीं छुड़ाना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
इन्टरनेट पर चोंच लड़ाऊँ ,
मैक्ड्वेल का पैग चढ़ाऊँ ,
राग-रंग अभिसार नदी में ,मुझे डुबाना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
बिल्ली पालूं ,कुत्ता पालूं ,
उंगुली पाँचों घी में डालूं ,
छुट्टा चारा चरुं रोज मैं ,मुझे चराना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
पेट बढ़ेगा ,भूख बढ़ेगी ,
सही कार्य में चूक बढ़ेगी,
उल्टी चाल चलूँ तो मेरी, मदद कराना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
दूसरों की मैं कमी गिनाऊँ ,
कमी दिखाकर रौब जमाऊँ ,
झुकें रहे सब सम्मुख मेरे, उन्हें झुकाना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
डॉ मनोज कुमार सिंह
9
हैं दिखने में कितने अच्छे
...............................
हैं दिखने में कितने अच्छे ,लगते देखो लोग यहाँ ।
कब डँस लेंगे नहीं पता , जहर भरे कुछ लोग यहाँ
स्वार्थ सिद्धि की गलियारों में
शतरंजी चालें चलते,
रंग बदलते गिरगिट -से वे
बातों में चलते चलते।
काले दिल पर चुना करके , रहते हैं कुछ लोग यहाँ ।।
कब डँस...............................
कौवे की भाषा है उनकी
पर कोयल सा बोल रहे ,
तोड़-फोड़ की राजनीती से ,
संशय का विष घोल रहे ,
ऊँच-नीच का भाव दिखाकर ,ठगते हैं कुछ लोग यहाँ ।।
कब डँस...........
अपनेपन की बातें करते
झूठे सपने दिखलाते,
चाटुकारिता के पोषक वे
झूठ बड़प्पन दर्शाते ,
काली करतूतों से जिनके,त्रस्त सभी हैं लोग यहाँ ।।
कब डँस ...........................
कीचड़ के कीड़े समझाते ,
संस्कार की बातें ,
गंदे मन की गलियारों में ,
बिताती जिनकी रातें,
विश्वासों पर घात लगाए, रहते हैं कुछ लोग यहाँ ।।
कब डँस ..............................
बड़े आदमी सा वे लगते
चिकने बड़े घड़े हैं
बैशाखी पर चलने वाले
सीधे तने खड़े हैं ,
आदमखोर , मसीहा बनकर , रहते हैं कुछ लोग यहाँ ।।
कब डँस ...........................
सावधान ,ईमान के पुतलों ,
झुकना मत उनके आगे ,
जागो औ प्रतिकार करो अब ,
मत बैठो चुप्पी साधे ,
निष्ठा और ईमान की ह्त्या, करते हैं कुछ लोग यहाँ ।।
कब डँस लेंगे ..........................
डॉ मनोज कुमार सिंह
10
गीत
...............................
दर्द हमारे दिल से उठकर,
जब अधरों तक आते हैं।
शब्द मिले तो अनुभव अपना,
गाकर सदा सुनाते हैं।।टेक।।
धुआँ धुआँ कुछ फैला हो,
जब अंतर्मन की घाटी में,
बीज तड़पते हैं भावों के,
शुष्क हृदय की माटी में,
बरसाकर नयनों से बादल,
हम जीवन सरसाते हैं।
शब्द मिलें तो.............
जीवन सागर में सुख दुःख की,
लहरें निशदिन लहराएँ।
चंचल मन के पंछी उनमें,
कभी डूबे औ उतराएँ।
संघर्षों की नाव चढ़े जो,
वहीं मुक्तिपथ पाते हैं।
शब्द मिलें तो.........
सजा कल्पना के पृष्ठों को,
इंद्रधनुष के रंगों में।
बहा सदा सपनों की नदियाँ,
मधुरिम भाव तरंगों में।
चलो तमस की बस्ती में इक,
अरुणिम सुबह उगाते हैं।
शब्द मिलें तो..........
डॉ मनोज कुमार सिंह
11
#चलो राष्ट्र उत्थान करें#
............................
हम सुभाष के पथ पर चलकर,
चलो राष्ट्र उत्थान करें।
संकल्पित कर्मों के बल पर,
नित्य लक्ष्य संधान करें।।
1
आशा औ विश्वास जगाकर,
त्याग ,प्रेम का दीप जलाकर,
वैचारिक गंगा में निशदिन,
पुनीत दिव्य स्नान करें।
हम सुभाष के पथ पर.....
2
शोषित,वंचित की सेवा कर,
बाल वृद्ध सबकी रक्षा कर,
जन-सीता की मुक्ति कार्य हित,
खुद को हम हनुमान करें।
हम सुभाष के पथ पर.....
3
तन,मन,धन जो करे समर्पित,
मातृभूमि पर सब कुछ अर्पित,
तेज प्रखर ,बलिदानी,ज्ञानी,
पैदा हम संतान करें।
हम सुभाष के पथ पर......
4
धीर,वीर,गंभीर,अचल हो,
सुन्दर ,सुस्मित हृदय-कमल हो,
सरहद की रक्षा में हँसकर,
हम जीवन बलिदान करें।
हम सुभाष के पथ पर.........
5
भव्य,दिव्य यह देश बने फिर,
सुखद,शांत परिवेश बने फिर,
सोने की चिड़िया वाली फिर,
भारत की पहचान करें।
हम सुभाष के पथ पर ........
6
आओ मिलकर तमस भगाएँ,
नव प्रभात की किरण उगाएँ,
रामराज्य के आदर्शों से ,
सुरभित हिन्दुस्तान करें।
हम सुभाष के पथ पर.......
डॉ मनोज कुमार सिंह
12
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
संस्कार का राम कहाँ है ,कृष्ण और बलराम कहाँ हैं ?
देव भूमि की भक्ति मूर्ति वो, लखन और हनुमान कहाँ हैं ?
अर्जुन का गांडीव कहाँ है ,जन कल्याणी शिव कहाँ है ?,
बुलंदी की भव्य -भाल की,भारत की वह नींव कहाँ है ?
भारत की उस दिव्य परंपरा, को फिर से गढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
वेदऋचा ,गीता ,सीता को फिर से कौन बचाएगा ?
वेद व्यास और वाल्मीकि अवतार कहाँ ले पायेगा ?
हिंसा के इस दौर में ,गाँधी महावीर को ढूढ़ रहा ,
शांतिदूत बनकर गौतम- सा कौन यहाँ फिर आयेगा ?
संस्कृति की विस्मृत पृष्ठों को बार-बार पढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
खुदीराम, भगत, चंद्रशेखर, जब धरती पर आते हैं |
मातृभूमि की बलिवेदी पर ,हँसकर प्राण लुटाते हैं |
पर देखो, बरसों से उनकी, कब्रों पे है धूल जमी ,
कुछ उनका हीं नाम बेचकर ,सत्ता का सुख पाते है |
राष्ट्रद्रोहियों ,गद्दारों का अंत, अभी करना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
एक तरफ सीमा पर सैनिक ,राष्ट्र हित मर जाते हैं |
एक तरफ क्रिकेट के छक्के ,लाखों में बिक जाते हैं |
पर्दों के नकली हीरो ,आज 'आइकन' बनते हैं |
मातृभूमि के असली' नायक' ,अब भी मारे जाते हैं |
माँ का दूध पीया सच में तो ,माँ के हित मरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
13
आचार्य राजशेखर ने काव्य प्रतिभा के दो रूपों को स्वीकार किया।
‘‘सा च द्विधा कारयित्री भावयित्री च।
अर्थात् कवि के लिए आवश्यक होती है कारयित्री प्रतिभा और भावयित्री प्रतिभा। वस्तुतः यहाँ कवि और कविमर्मज्ञ में वही अन्तर है जो अन्तर ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तत्पर व्यक्ति और ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति में है। वस्तुतः काव्यरूपी ब्रह्म का साक्षात्कार कर चुका व्यक्ति ही काव्य का मर्मज्ञ(आलोचक) हो सकता है और उसका कारण यह भावयित्री प्रतिभा ही है।लेकिन आज आलोचक की निष्पक्ष भूमिका संदिग्ध है। वह सहजता को ठगी का शिकार बनाने में अपनी प्रतिभा का प्रयोग कर रहा है।मेरी एक रचना इसी भाव पर आधारित है।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि उदार,तुम आलोचक।।
1
क्यों कविमर्मज्ञ का कर्म आज।
सुनकर आती है हमें लाज।
ज्यों गौरैयों पर टूट पड़े,
हिंसक भक्षक दुर्दांत बाज।
सदियों से घायल कवि कहता,
क्यों शोषित मैं,तुम हो शोषक।।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि उदार,तुम आलोचक।।
2
तेरे हाथों में छाप यंत्र।
तुम ही विक्रय के विज्ञ मंत्र।
तुम साधन साधक स्वयं देव!
अद्भुत खूबियों से भरे तंत्र।
खुद लोकार्पण का ले प्रभार,
बाजार बनाते हो रोचक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि उदार,तुम आलोचक।।
3
तुम लाभांशों का योग देख।
किसको छापूँ उद्योग देख।
रचना कैसी हो फर्क नहीं,
छपतीं आमद,उपभोग देख।
अंधी स्पर्धा के युग के
तुम सफल आज इक संयोजक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि उदार,तुम आलोचक।।
4
जब उठती लहरें स्वाभाविक।
हिलती नावें हिलता नाविक।
कवि भी तन्मय होकर झूमता,
पाकर कविता का मधु मानिक।
जब अनासक्त कवि होता है,
कविता होती उसकी प्रेरक।
हे काव्य कुञ्ज के नित शोधक!
मैं कवि उदार,तुम आलोचक।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
14
.............................................
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।।
1
सदी बीत गई चाँद तारे उगे सब।
धरा,सूर्य सारे नज़ारे उगे सब।
क्षितिज पर झुके आसमां की अदा ले,
धरा चूमते हर किनारे उगे सब।
हकीकत यही है उजाला जहाँ तक,
वहाँ न तमस का चला, न चलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
2
सहज,सत्य,सुन्दर,सलोना,सुचिंतन।
जरुरी बहुत है सृजन नित्य नूतन।
मधुर शांत शब्दों की अपनी छवि हो,
लगे न कहीं से उड़ाए हैं जूठन।
शब्दों का दीपक तमस पर है भारी,
मगर मूल्य पल-पल चुकाना पड़ेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
3
तमस की निशा जब,धरा को डराए।
उजालों की देवी उषा बनके आए।
पनपे जो मन में घुटन की अमावस,
मिटाकर हमेशा नई सोंच लाये।
लहू से जो सींचा है अहले वतन को,
वहीं यश का गौरव पताका बनेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
4
नजाकत की खुश्बू से भर भर के सपने।
किरन ने सुमन में भरे रंग कितने।
भौंरों, तितलियों के गुंजार सुनकर,
चमकते हैं उपवन के व्यक्तित्व अपने।
सदा तुम शिरीष पुष्प सा मुस्कुराओ,
खिजां में भी सुरभित चमन इक मिलेगा।
तू रख रौशनी बस,उसी से डरेगा।
अँधेरा कभी ना मिटा,न मिटेगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
15. चेतावनी गीत
टकराओगे हमसे गर, इस तरह मिटाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
परमाणु बम की धमकी का कोई हम पर असर नहीं।
तुझे मिटाने में छोड़ेंगे,अब हम कोई कसर नहीं।
समझायेंगे,ना समझे फिर,..फिर समझाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
पहले भी टुकड़े कर डाले,फिर टुकड़े करवाएँगे।
गिलगित,बलूचिस्तान,सिंध को आजादी दिलवाएंगे।
फिर उनसे तेरे सीने पर दाल दराया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
जाने कैसे सोच रहे ,मेरा कश्मीर तुम्हारा है?
वैसे ही हम सोच रहे कि पाकिस्तान हमारा है।
न माने तो हिंदूकुश तक तिरंगा फहराया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
दे दो हमको दाउद,हाफिज जैसे सब हत्यारों को।
आतंकी दहशतगर्दी के घिनौने सरदारों को।
नहीं दिए तो रक्त का दरिया रोज बहाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
अब हम सहन न कर पाएंगे सुन तेरी गद्दारी को।
दुनिया को भी बतलाएँगे हर तेरी मक्कारी को।
कर अनाथ दुनिया में तुझसे,भीख मँगाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
अब तक खून बहाया तुमने,आज हमारी बारी है।
दहशतगर्दी के खिलाफ अब लड़ने की तैयारी है।
शपथ लिया है दहशतगर्दी पूर्ण मिटाया जाएगा।
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
बच्चा बच्चा बोल रहा है भारतमाता की जय जय।
एक मरें तो सौ सौ मारो,दुश्मन के घर मचे प्रलय।
तुम्हें मिटाकर शांति अमन दुनिया में लाया जाएगा
इतिहासों में 'एक था पाकिस्तान' पढ़ाया जाएगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
16
व्यंग्य गीत
आप भले ठुमके ठर्रे का ,
मजा लीजिये नेता जी।
जनता को तो कम से कम,
मत सजा दीजिये नेता जी।
सजी सैफई की महफ़िल ज्यों,
मथुरा, माया ,काशी है।
जनता की सारी दौलत,
तेरे चरणों की दासी है।
लुटा रहे दोनों हाथों,
कुछ हया कीजिए नेता जी।
जनता को तो कम से कम,
मत सजा दीजिए नेता जी।
भारी भरकम तामझाम ये ,
तेरी ताकत दिखलाए।
सुविधाओं की क्या कहने है,
इन्द्रलोक भी शरमाए।
कुछ सुख के टुकड़े जनता को,
अदा कीजिए नेता जी।
जनता को तो कम से कम,
मत सजा दीजिए नेता जी।
तेरे आशीर्वाद से ,
गुंडागर्दी पाँव पसारे है।
भ्रष्टाचारी,चोर,लुटेरों के
तो वारे न्यारे हैं।
सीधी सादी जनता पर,
कुछ दया कीजिये नेता जी।
जनता को तो कम से कम,
मत सजा दीजिये नेता जी।
डॉ मनोज कुमार सिंह
जन्मतिथि -20,02. 67 ,आदमपुर [सिवान], बिहार |
शिक्षा - एम० ए०[ हिंदी ],बी० एड०,पी-एच ० डी० |
प्रकाशन - विभिन्न राष्ट्रीय -अन्तर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित |
'नवें दशक की समकालीन हिंदी कविता :युगबोध और शिल्प ' और
'छायावादी कवियों की प्रगतिशील चेतना ' विषय पर
शोधग्रंथ प्रकाशनाधीन | विद्यालय पत्रिका 'प्रज्ञा ' का संपादन |
सम्मान/पुरस्कार 1- नवोदय विद्यालय समिति
[मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार की
स्वायत इकाई ] द्वारा लगातार चार बार गुरुश्रेष्ठ
सम्मान /पुरस्कार से सम्मानित
2-शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान 2012
3 - स्व. प्रयाग देवी प्रेम सिंह स्मृति साहित्य सम्मान 2014
4-सुदीर्घ हिंदी सेवा और सांस्कृतिक अवदान हेतु प्रशस्ति-पत्र 2015
सम्प्रति- स्नातकोत्तर शिक्षक ,[हिंदी] के पद पर कार्यरत |
संपर्क - जवाहर नवोदय विद्यालय,जंगल अगही,पीपीगंज,गोरखपुर
पिन कोड-273165
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