Wednesday, April 8, 2020

ट्रेनिंग(लघुकथा)

                         ट्रेनिंग

मैं अपनी बेटी को डांट रहा था।मेरा ये रूप देखकर बिटिया हतप्रभ थी।वह सोच रही थी कि पापा आज तक मुझे दुलारने और प्यार करने के बजाय कभी भी इस तरह का व्यवहार नहीं किये,आज इनको क्या हो गया कि इस तरह पेश आ रहे हैं।वह मेरी तेज तेज आवाज से घबरा गई।मैं उसे किसी न किसी तरह गलत साबित करके डाँटने का काम कर ही रहा था कि पत्नी आ धमकी।बिटिया भागते हुए माँ से लिपट कर रोने लगी।पत्नी ने मुझसे थोड़े रूखेपन से बोला कि ये क्या कर रहे हो।ऐसा तो पागल ही करते हैं।क्या गलती किया है मेरी बेटी ने,जो इस तरह इस पर चिल्ला रहे हो?
फिर मैं शांत भाव से पत्नी को बताया कि बिटिया को ससुराल में आने वाली दिक्कतों से वाकिफ करा रहा हूँ।ससुराल में जब इस तरह की बेवजह स्थिति आएगी तो कैसे धैर्यपूर्वक उसे सहेगी और अपना आपा खोए बिना जीवन में खुद को कैसे मजबूत बना सकेगी,उसी की ट्रेनिंग दे रहा हूँ।अचानक बेटी,माँ को छोड़कर मुझसे लिपट गई।रोते हुए कहने लगी -पापा आप की ट्रेनिंग मुझे स्वीकार है।अब सालों से जब कभी उसका मन नहीं लगता तो मेरे पास आकर कहती है- पापा अपनी औकात दिखाओ!फिर मैं शुरू हो जाता हूँ।वह डरने का नाटक करती है।अब उसे मेरी डाँट में मजा आने लगा है।मैं उसके भविष्य के बारे में आश्वस्त होता जा रहा हूँ कि वह मजबूत हो रही है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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